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हमारी सिलचर की दुकान में एक व्यक्ति सर्प-मणि लेकर आया, जिसका भाई अपनी जान गंवा चुका था। वह मणि चार लाख में देना चाहता था। हमने उसे कलकत्ता भेजने को कहा। वह रात भर रह कर प्रात: कहीं चला गया और वापस नहीं लौटा।
देवलोक/भवनपति नाग देवों और तिर्यंच नागों का पारस्परिक सम्बन्ध अनादिकाल से है। अत: उभय प्रकार की प्रचलित कहानियाँ व ज्ञातव्य सिखाने के पश्चात् एतद्विषयक "नागविद्या" नामक मूल ग्रन्थ को देने से पूर्व उसका संक्षिप्त परिचय देना उपयुक्त होगा। इसमें नागलोक के नगरों, राजा-रानी, सर्पदंश के चपेट में आये कुमार आदि का भी विवरण है। सर्प विष से प्रभावित व्यक्ति के निर्विष होने के लिए कृत उपचार, पूजा विधि आदि सम्बन्धित ज्ञातव्य भी इसमें है।
इसकी भाषा राजस्थानी प्रधान है। गद्य, पद्य, वार्ता की भाषा तीन-चार सौ वर्ष से प्राचीन क्रमिक विकसित हो सकती है। बीच-बीच में संख्या कम भी आलेखित है। इसका रहस्य विशेषज्ञ ही बतला सकते हैं।
यह छोटा सा ग्रंथ मध्यप्रदेश के पण्डरिया स्थान में एक सज्जन के पास अस्तव्यस्त पत्रों के गुटके में था जिसे व्यवस्थित कर नया विषय होने से प्रकाशित किया जा रहा है।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ * सन् १९८८ में जीव संरक्षण विभाग ने छापा मारकर साँपों की २५८०० खालें बरामद की थी। १९९३ इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर कस्टम अधिकारियों ने स्वीडिश नागरिक से विविध साँपों की १८४८ खालें बरामद की जिसकी कीमत १० लाख थी। वह इस्तांबूल जा रहा था। ४ जुलाई १९९३ में स्पेशल स्टाफ के बी. एम. शर्मा ने जाकिर हुसैन को रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार किया। उसके बड़े ट्रंक में १३०० खालें बरामद की जिसमें उड़न साँप, जलेबिया आदि की नीले-हरे रंग की खालें भी थीं।
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