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देव ने कहा हमें मांस- पित्त वाले शरीर की गंध भी असह्य है। राजा ने कहाबेटा राज्य धुरा कौन संभालेगा ? तब देव ने कहा तात ! देवलोक से च्यवन कर पुण्यानुभाव से एक जीवात्मा आपके यहां उत्पन्न होकर सर्वज्ञ शासन का उन्नायक होगा। मैं नागराज हूँ। मेरे दिया हुआ उसका नाम नागदत्त रखना! नागराज स्वस्थान गया और पद्मश्री के यथासमय पुत्र नागदत्त का जन्म हुआ जिसका विस्तृत जीवनचरित्र आगे वहाँ विस्तार से लिखा है।
कुशल निर्देश जून १९८३ के अंक में 'तक्षक नाग' शीर्षक एक कहानी प्रकाशित की थी तदनुसार कान्तिनगरी के राजा कनकसेन की रानी कनकलता की पुत्री कनकवती तरुणावस्था को प्राप्त हुई थी। उसी नगर में एक भारो नामक कठिहारा रहता था, जिसकी स्त्री बड़ी कर्कशा और झगड़ालू थी। उससे वह तंग आ गया था। इसी समय पाताललोक के पद्मनाग के पुत्र तक्षक नाग ने पिता से सैर करने के लिए मनुष्यलोक में आने की आज्ञा मांगी। पिता ने कहा- तुम मर्त्यलोक में भले जाओ किन्तु कोई अपने कुल की शोध करे वहाँ फिर न रुकना । तक्षक नाग मर्त्यलोक में आया और जहाँ कठियारा बैठा था वहाँ उसे जलती हुई गरम बालु पर रेंगते देखकर झगड़ालू पत्नी को मारने के उद्देश्य से घड़े का पानी गिराकर तक्षक नाग के सामने कर दिया। वह उसमें प्रविष्ट हो गया। पत्नी ने जब घड़ा खोल कर देखा तो उसमें आँवले जितने बड़े-बड़े ८१ मोतियों काहार पाया। पत्नी लाखों-करोड़ों की सम्पत्ति देखकर पति के अनुकूल हो गई। उसमें से दो-चार मोती ही गिरवी रखे जिसमें हवेली आदि खूब ठाठ-बाठ हो गया । कठिहारा राजमान्य अधिकारी हो गया। राजा ने हार लेकर उसे प्रचुर धन दे दिया। राजा ने उस हार को अपनी तरुण पुत्री कनकवती को दे दिया । वह उसे धारण किए रहती । वह तक्षक नाग तो था ही, दिन में हार और रात में जार हो जाता। जब पति संयोग से शारीरिक विकास देखा तो माँ के पूछने पर हार के ही जार होने की बात कही । राजा-रानी ने प्रच्छन्नतया प्रतीति कर उसके प्रियतम की जाति - परिचय पूछने को कहा ।
कनकवती के आग्रहपूर्वक पूछने पर अपना परिचय देकर पितृ पद्मनाग की आज्ञानुसार तक्षक नाग सदा के लिए चला गया। राजकुमारी ने पति सुख-हार और जार दोनों खोये। प्रभावकचरित्र के भी मानतुंगसूरिप्रबन्ध में लिखा है कि नागराज धरणेन्द्र ने उनके मानसिक रोग को दूर करने के लिए 'नमिऊण पास विसहर वसह जिणफुलिंग' १८ अक्षरों का मंत्र दिया था। इसकी यंत्र - बृहच्चक्र लिखने की विधि में आठ पंखुड़ियों में पहले 'ॐ ह्रीं श्रीं' और अंत में 'ह्रीं नम:' आलेखित करना चाहिए। पूरे यंत्र बृहच्चक्र की विधि में पंचपरमेष्ठी और त्रिरल, १६ विद्यादेवियों के नाम लिखे जाते हैं । २४ तीर्थंकर, माताओं, दिग्पालों, नौ ग्रहों आदि के नाम भी लिखे जाते हैं। हमें विस्तार में न जाकर यहाँ के आठ नाग देवताओं के नाम उद्धृत करना अभीष्ट है जो इस प्रकार है
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