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एवं मधुर गति वाले क्रीड़ाशील होते हैं। उनकी ऊंचाई सात हाथ और आयुष्य १ सागरोपम से भी अधिक होती है।
देवलोक में देवों के वाहन भी पशुरूप धारी देव ही होते हैं। यतः शक्रेन्द्र का वाहन ऐरावत, जो उनके पूर्वभव कार्तिक सेठ को अपमानित करने वाला तापस था। देवों के वाहन अपने शरीर की विक्रिया से तनुरूप आवश्यकतानुसार रूप धारण कर लेते हैं एवं देव भी अपने मूल रूप से नहीं उत्तर वैक्रिय से पहिचान के लिए पूर्वरूप में दर्शन देते हैं।
दीवसागर पइण्णयं नामक आगम सूत्र में मनुष्य क्षेत्र ढाई द्वीप से बाहर मनुष्योत्तर पर्वत के बाद जो करोड़ों योजन परिधि वाले द्वीप समुद्र हैं उनके रुचक, कुण्डल नन्दीश्वर द्वीपादि में शाश्वत जिनालय एवं इन्द्रिाणियों आदि की राजधानियाँ हैं। मानुषोत्तर पर्वत पर १६ शिखर हैं जिनमें १२ के नाम विविध रत्नमय लिखे हैं जिन पर नन्दिषेण, अमोघ, गोस्तूप, सुदर्शन तथा पल्योपम स्थिति वाले नागकुमार देव और सुपर्ण देव निवास करते हैं। नन्दीश्वर द्वीप के रतिकर पर्वत पर सौधर्म (शकेन्द्र) और ईशान देवलोक की ८ अग्र महीषियों की राजधानियाँ हैं। कुण्डल पर्वत पर भी १६ नागकुमार देव रहते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं
१.त्रिशीर्ष, २. पंचशीर्ष, ३. सप्तशीर्ष, ४. महाभुज, ५. पद्मोत्तर, ६. पद्मसेन, ७.महापद्म, ८.वासुकि, ९.स्थिरहृदय, १०.मृदुहृदय, ११.श्रीवत्स, १२.स्वस्तिक, १३. सुन्दरनाग, १४.विशालक्ष, १५. पाण्डुरंग और १६. पाण्डुकेशी।
इनके लिए कुण्डल पर्वत के भीतर सौधर्म ईशान लोकपालों की सोलह-सोलह राजधानियाँ हैं। मानुषोत्तर पर्वत में चार तथा अरुण समुद्र में देवों के ६ आवास हैं। उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होती है। असुरकुमारों, नागकुमारों व उदधिकुमारों का अरुणोदक समुद्र में आवास है और उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होती है। द्वीपकुमारों एवं अग्निकुमारों के आवास अरुणवरद्वीप में हैं और उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होती है।
जैनेतर लोग पृथ्वी शेषनाग पर टिकी हुई कहते हैं पर वस्तुत: वह धनवात और तनवात पर टिकी हुई है। अवधिज्ञान के असंख्य प्रकार हैं, मिथ्यादृष्टि का ज्ञान विभंग (अज्ञान) कहलाता है अत: जिन्होंने सीमित विभंग से भुवनपति के नागलोक को देखा है वे इसीलिए नाग/शेषनाग पर पृथ्वी टिकी हुई कहते हैं।
नाग लोक के देव साँप का रूप धारण करते हैं, इसलिए तिर्यञ्चगति के साँपों से उनका अनेक प्रकार का सम्बन्ध अनादि काल से है। सर्प विष उतारने में मंत्र-तंत्र झाडा-झपटा आदि में भुवनपति देव सहायक होते हैं, जो उवसग्गहर स्तोत्रादि से प्रसिद्ध
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