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है । परिग्रहमोह के कारण मर के जो साँप हो जाते हैं वे खजाने की रक्षा करते हुए देखे जाते हैं। भाग्यहीन उत्तराधिकारी के लिए जमीन में गाड़ा हुआ धन भी कोयला रूप में परिणत हो जाता है। उग्र क्रोध कषाय वाला मर के साँप हो जाता है और वह अपने को हानि पहुँचाने वाले व्यक्ति से बैर का बदला लिए बिना नहीं छोड़ता । गारुड़िक लोग मंत्र बल से साँप आकृष्ट कर सर्पदंश के विष को वापस खींचकर निर्विष भी करा देते हैं किन्तु दशवैकालिकसूत्र के दूसरे अध्ययन की छठी गाथा के अनुसार अगंधनकुल का सांप अपना वमन किया हुआ विष वापस नहीं लेता अतः रहनेमि को बोध देते राजीमति कहती है
अह्न्च भोयरायस्स त्वसिअंधर्क व्रहिणो मा कुले गंधणो हो मो, संजमं तिहुणो धर।
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पक्खंदे जलियं जोई, धूमकेउं दुरासयं निच्छति वंतयंभोत्तू, कुले जाया अगंधणे ।
एक कथानक में गुरु का शिष्य, जो समर्पित गुरुभक्त था, के रात्रि में सो जाने पर एक साँप आया और अपना वैर अदा करने के लिए शिष्य को काटने के लिए प्रस्तुत हुआ। गुरुमहाराज ने उसे बहुत समझाया पर वह अपने वैर का बदला लिए बिना किसी प्रकार राजी नहीं हुआ तो उस रक्त पिपासु को गुरुमहाराज ने खजूर के जैसे तीक्ष्ण पत्ते से सोए हुए शिष्य की छाती पर बैठकर उसका थोड़ा रक्त निकाल साँप को संतुष्ट किया।
श्री रत्नप्रभसूरि, श्री जिनदत्तसूरि आदि जैनाचार्यों द्वारा लाखों नए जैन बनाने के इतिहास में सर्पदंश से मृतप्राय: राजपुत्र, श्रेष्ठि-पुत्रादि को जीवित करने के उदाहरण अनेकशः पाये जाते हैं।
एक बार वंशावली का रिकार्ड रखने वाले बही भाटों से ज्ञात हुआ कि साँपों के भी भाट हुआ करते हैं। वे जातिवंत साँपों की बांबी पर जाकर साँपों के प्रिय संगीत वाद्ययंत्र द्वारा बजा कर साँपों को आकृष्ट करते हैं और उन्हें वंश का विरुद् सुनाते हैं। साँप बड़ी मस्ती से सुन कर उन्हें स्वर्ण रौप्य मुद्रा, आभूषण, रत्न आदि ईनाम देते हैं। यह बात कहाँ तक सही है, कहा नहीं जा सकता किन्तु भवनपति देव कौतुकी होते हैं अतः कथंचित् सत्यांश अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
राजस्थान में गोगाजी, केशरियाजी, पाबूजी भभूतासिद्ध आदि की बड़ी मान्यता है । भाद्रपद सुदि ९ को गोगा नवमी में गोगाजी की पूजा में खीर का चढ़ावा होता है। गाँवों में उनकी चौकियां, देवालय आदि पाये जाते हैं। बीकानेर में गोगा दरवाजा है और पास में तालाब भी है। राजस्थान के सभी गांवों में गोगा जी के थान होते हैं। किसी के सर्पदंश देने पर गोगाजी के थान पर दर्दी को लाकर रख दिया जाता था और एक-दो दिन में वह निर्विष होकर आ जाता था। सौराष्ट्र में भी गोगा पीर की मान्यता है और घटना भेद से कथाएँ भी प्रचलित हैं। राजस्थान में पर्ड, बाँडी, पीना आदि सांप पाये जाते हैं। साँपों की सैकड़ों जातियां हैं वे सभी विषधर नहीं होते। साँप देखते ही हर व्यक्ति भयाक्रांत हो जाता
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