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जैसाकि प्रारम्भ में कहा जा चुका है कि आचार्य कीर्तिरत्नसूरि के प्रमुख शिष्यों में लावण्यशील और हर्षविशाल की शिष्य-परम्परा लम्बे समय तक अस्तित्त्व में रही। हर्षविशाल की शिष्य-परम्परा के पश्चात् लावण्यशील की शिष्यसन्तति, जो आज तक चली आ रही है, का विवरण प्रस्तुत है :
___ आचार्य कीर्तिरत्नसूरि के शिष्य लावण्यशील की परम्परा में हुए उपाध्याय चन्द्रकीर्ति ने वि० सं० १६८२/ई० सन् १६२६ में धर्मबुद्धिपापबुद्धिचौपाई तथा वि०सं० १६८९/ई०सन् १६३३ में यामिनीभानुमृगावतीचौपाई की रचना की।२७ उक्त कृतियों के अन्त में रचनाकार ने प्रशस्ति के अन्तर्गत अपनी लम्बी गुर्वावली दी है, जो इस प्रकार है :
कीर्तिरत्नसूरि लावण्यशील पुण्यधीर ज्ञानकीर्ति गुणप्रमोद समयकीर्ति विनयकल्लोल उपा० चन्द्रकीर्ति (वि०सं० १६८२ में धर्मबुद्धिपापबुद्धिचौपाई एवं वि० सं०
१६८९ में यामिनीभानुमृगावतीचौपाई के रचनाकार) उपाध्याय चन्द्रकीर्ति के एक शिष्य खेमराज हुए जिन्होंने वि०सं० १६८१/ ई०स० १६२५ में नलदमयन्तीरास की प्रतिलिपि तैयार की।२८ इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख करते हुए अपने गुरु चन्द्रकीर्ति का सादर स्मरण किया है :
कीर्तिरत्नसूरि लावण्यशील
पुण्यधीर ज्ञानकीर्ति
गुणप्रमोद समयकीर्ति
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