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जैन धर्म के चतुर्विध संघों का पारस्परिक सहदायित्व
डॉ० अरुण प्रताप सिंह
धार्मिक विकास के इतिहास में संघ का एक विशिष्ट महत्त्व है। सुव्यवस्थित रूप से धर्म के प्रचार-प्रसार में यह अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। जैन संघ भी इसका अपवाद नहीं था। प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव के काल से ही संघ के अस्तित्व की सूचना मिलती है; तथापि ऐसा प्रतीत होता है कि संघ की अवधारणा बाद में विकसित हुई। जैनधर्म के प्राचीनतम ग्रन्थ आचाराङ्ग एवं बाद के दशवैकालिक आदि आचारगत ग्रन्थों में “भिक्खु वा भिक्खुणी" अथवा "निग्गंठ वा निग्गंठी वा" का प्रयोग ही प्रायः हुआ है। इससे हमें भिक्षु भिक्षुणियों के समुदाय का ही संकेत प्राप्त होता है जिनको नियम - पालन का निर्देश दिया गया था। संघ शब्द का उल्लेख स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा एवं प्रकीर्णकों में हुआ है, परन्तु इससे संघ का क्या अभिप्रेत् है, स्पष्ट नहीं है। भगवती में चतुर्विध तीर्थ का उल्लेख है, सम्भवतः चतुर्विध संघ के सम्बन्ध में सबसे प्राचीन संकेत हमें यहीं प्राप्त होता है। दिगम्बर- परम्परा के ग्रन्थों सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक एवं भगवती आराधना आदि में संघ का सन्दर्भ अनेक बार आया है। भगवती आराधना में गुण-समूह का नाम संघ बताया गया है- संघो गुणसंघाओ।' इसी प्रकार तत्त्वार्थवार्तिक में दर्शन, ज्ञान और चारित्र में जो संघात को प्राप्त है, उसे संघ कहा गया है- "दंसणणाण चरिते संघायतो हवे संघो" । २ दर्शन, ज्ञान और चारित्र - इन तीनों रत्नों से युक्त मुनि समूह का नाम संघ बताया गया है। जैनधर्म की दो मुख्य धारा - श्वेताम्बर एवं दिगम्बर — के अतिरिक्त एक तीसरी धारा यापनीय के नाम से प्रख्यात हुई। इसमें भी हमें कालान्तर में विकसित हुए गणों एवं अन्वयों की सूचना मिलती है, परन्तु प्रारम्भिक स्रोतों में केवल संघ शब्द ही प्राप्त होता है। सबसे प्राचीन स्रोत कदम्बवंश के नरेश रतिवर्मा का हल्सी अभिलेख है जिसमें ‘“यापनीय संघेभ्यः” उल्लिखित है।' इस बहुवचनात्मक प्रयोग से यह सिद्ध है कि इस सम्प्रदाय के अन्तर्गत भी कुछ गण या अन्वय थे (जैसाकि कालान्तर के अभिलेखों से सूचित भी होता है)। संघ स्पष्टत: एक अमूर्त राष्ट्रीय इकाई परिलक्षित होती है जिसमें अनेक गणों, गच्छों एवं कालान्तर में विकसित हुए विभिन्न शाखाओं एवं कुलों का समावेश था। यहाँ हमारा तात्पर्य भिक्षु भिक्षुणी एवं श्रावक-श्राविका के उस समवेत संघ से है जिसे सामान्य शब्दावली में चतुर्विध संघ कहा गया। प्रस्तुत लेख का उद्देश्य इन्हीं प्रवक्ता, इतिहास विभाग, श्री बजरंग महाविद्यालय, दादर आश्रम, बलिया.
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