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नवाक्षरी विद्या की तन्त्रसाधना 'सुभगायोना' की उपस्थिति में सम्पन्न होती थीं। वामाचार साधना को प्रतिपादित करने वाले 'भारतीकल्प' में सुन्दर स्त्रियों और देवांगनाओं को सम्मोहित करने वाले तथा शत्रुओं को अकालमृत्यु देने और प्रेतालय भेजने से सम्बन्धित यन्त्रों तथा मन्त्रों का भी वर्णन हुआ है। उच्चाटन मन्त्रों में फट्, बषट् और स्वाहा जैसी तान्त्रिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग होता था । ये साधनाएँ श्मशान जैसे स्थलों पर की जाती थीं। इन साधनाओं से सम्बन्धित मन्त्रोच्चार सुनने में भयावह होते थे। इनमें देवी के पाश, अंकुश और बाण जैसे आयुधों से युक्त भयंकर स्वरूप का ध्यान किया गया है। ग्रन्थों में सरस्वती मन्त्र सिद्धि के समय आने वाली विभिन्न बाधाओं को दूर करने वाले सुरक्षा मन्त्रों के भी उल्लेख है।
जहाँ तक जैन सरस्वती के प्रतिमाओं में तन्त्र के प्रभाव का प्रश्न है तो निश्चित रूप से तन्त्र का प्रभाव अत्यल्प रहा है। जैन परम्परा की मूर्तियों में सर्वदा सरस्वती का अनुग्रहकारी शान्तस्वरूप ही प्रदर्शित हुआ है। केवल कुछ ही उदाहरणों में विद्या, संगीत और अन्य ललितकलाओं की देवी सरस्वती के साथ शक्ति के
भाव वाले लक्षण प्राप्त होते हैं।
कुछ तान्त्रिक
सन्दर्भ :
२.
१. समवाओ, सं० युवाचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती, लाडनूंं १९८४. ज्ञाताधर्मकथा १/४, सं० मधुकर मुनि, जैनागम प्रकाशन समिति, व्यावर, १९८१.
३.
५.
४. देवेन्द्रमुनि शास्त्री, जैन आगम साहित्य- मनन और मीमांसा, उदयपुर, पृष्ठ. निर्वाणकलिका, पृष्ठ १७, द्रष्टव्य शाह, यू०पी० 'आइकनोग्राफी ऑफ जैन गार्डस सरस्वती', जर्नल आव यूनिवर्सिटी आव बाम्बे, खण्ड १०, मुम्बई, १९४१, पृष्ठ १९६.
६.
७.
८.
विशेषावश्यक भाष्य गाथा ३५८९, सम्पा० पं० दलसुख मालवणिया, एल०डी० सिरीज २१, अहमदाबाद, १९६८.
९.
शाह, यू०पी०, पूर्वनिर्दिष्ट, पृष्ठ १९६.
अशोक कुमार सिंह, राजशेखर सूरिकृत प्रबन्धकोश का आलोचनात्मक अध्ययन, (शोधप्रबन्ध), पृष्ठ २६४-२६५.
वृद्धवादि, सिद्धसेन प्रबन्ध, प्रबन्धकोश, राजशेखर सिंघी जैन ग्रन्थमाला, कलकत्ता १९४०, पृष्ठ १३-१५.
सुशीला खरे, प्राचीन भारतीय संस्कृति में सरस्वती, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी - ५, १९६६, पृष्ठ २६.
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