________________
सरस्वती आराधना से सम्बन्धित स्तोत्रों एवं मन्त्रों की रचना का जहाँ तक प्रश्न है, सर्वप्रथम बप्पभट्टिसूरि के 'शारदास्तोत्र' एवं 'सिद्धसारस्वतीस्तव' प्राप्त होते है। इनके अतिरिक्त मल्लिषेणकृत सरस्वतीमन्त्रकल्प, हेमचन्द्रकृत 'सिद्धसारस्वतस्तव', जिनप्रभसूरिकृत 'शारदास्तवनम्', मुक्तिविमलगणिकृत 'सरस्वतीस्तोत्रम्' आदि लगभग ३० से अधिक तोत्र प्राप्त होते हैं। इन तान्त्रिक स्तोत्रों में शान्तिक, पौष्टिक, स्तम्भन, मारण, उच्चाटन जैसी तान्त्रिक साधनाओं का प्रचुर उल्लेख है।१३
जैन-परम्परा में सरस्वती से सम्बन्धित मन्त्र भी अधिक संख्या में प्राप्त होते हैं। भद्रबाहुस्वामी, आचार्य बप्पभट्टिसूरि, हेमचन्द्र, मल्लिषेण, सोमतिलक, अभयदेव, जिनप्रभसूरि, सर्वदेवगणि और देवभद्रसूरि रचित सरस्वती मन्त्रों सहित लगभग ८० मन्त्र उपलब्ध होते है। इन मन्त्रों के जाप की विधि, मन्त्र-जाप संख्या तथा मन्त्र के फल के विषय में आचार्यों ने प्रसङ्गवश उल्लेख किया है।४
जैन स्तोत्रों में सरस्वती की साधना के लिये विभिन्न चामत्कारिक यन्त्रों के निर्माण से सम्बन्धित विस्तृत उल्लेख प्राप्त होते है। बप्पभट्टि और मल्लिषेण ने सरस्वती-यन्त्रपूजा विधि में अष्ट, द्वादश, षोडश, चौंसठ, १०८ तथा एक हजार पंखुड़ियों वाले पद्म पर बनाये जाने वाले यन्त्रों, होमकुण्ड में सम्पन्न विभिन्न तान्त्रिक नियाओं एवं दस हजार, बारह हजार, एक लाख तथा इससे भी अधिक बार सरस्वती मन्त्रों के जाप की विधि बतायी है। 'सरस्वतीकल्प' में इन तान्त्रिक साधनाओं को 'सिद्धसारस्वतबीज' कहा गया है। उल्लेखनीय है कि नैषधकार श्रीहर्ष ने भी 'मन्त्रयुक्त सारस्वत चिन्तामणि यन्त्र' निर्मित किया था।१५
ज्ञातव्य है कि सरस्वती के भयंकर स्वरूपों वाले साधना मन्त्रों की भीर रचना हई है। भारतीकल्प, अर्हद्दासकृत 'सरस्वतीकल्प', शुभचन्द्रकृत 'सारस्वतमन्त्रपूजा' (लगभग १०वीं शती ई०) एवं एकसन्धिकृत 'जिनसंहिता' में त्रिनेत्र एवं अर्धचन्द्र से युक्त जटाधारी सरस्वती को भयंकर स्वरूपा और हुंकारनाद करने वाली बताया गया है। कुछ जैन ग्रन्थों में सरस्वती के करों में अंकुश और पाश का उल्लेख भी उनके शक्तिस्वरूप को ही प्रकट करता है। जैन स्तोत्रों में सरस्वती के तान्त्रिक स्वरूप को प्रकट करने वाले विभिन्न नाम भी प्राप्त होते हैं जैसे-काली, कामाक्षी, कपालिनी, कौली, रौद्री, खङ्गिनी, कामरूपिणी, त्रिपुरसुन्दरी, जम्भिनी, स्तम्भिनी, शूलिनी, हुंकारा, चामुण्डा, भैरवी आदि। विद्यानुशासन (लगभग १५वीं शती) में भयंकर दर्शना त्रिनेत्र वागीश्वरी को तीक्ष्ण और लम्बे दाँतों तथा बाहर निकली हुई जिह्वा वाली बताया गया है।१६
जैनधर्म में देवी के भयानक स्वरूप वाले वामाचार साधना के भी स्पष्ट सन्दर्भ हैं। इनमें स्त्रीमोहन तथा काम इच्छा पूर्ति से सम्बन्धित मन्त्र विशेषत: उल्लेखनीय हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org