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आचार्य कीर्तिरत्नसूरि के शिष्य हर्षविशाल द्वारा रचित कोई कृति तो नहीं मिलती; किन्तु इनकी परम्परा में हुए लब्धिकल्लोलगणि ने वि०सं० १६४८ में जिनचन्द्रसूरि अकबरप्रतिबोधरास" की रचना की । इनकी दूसरी कृति है रिपुमर्दनरास अपरनाम भुवनानन्दरास (रचनाकाल वि०सं० १६४९ / ई०स० १५८३) जिसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी लम्बी गुर्वावली दी है, ११ जो इस प्रकार है
कीर्तिरत्नसूरि
हर्षविशाल
।
हर्षधर्म
1 साधुमन्दिर T विमलरंग
कुशलकल्लोल 1 लब्धिकल्लोल
(जिनचन्द्रसूरि अकबरप्रतिबोधरास वि०सं० १६४८, रिपुमर्दनरास वि०सं० १६४९, कृतकर्मराजर्षिचौपाई वि०सं० १६६५ आदि के रचनाकार)
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लब्धिकल्लोल के एक शिष्य गंगादास ने वि० सं० १६७१ में वंकचूलरास की रचना की। १२ लब्धिकल्लोल के द्वितीय शिष्य ललितकीर्ति हुए, जिनके द्वारा रचित कीर्तिरत्नसूरिगीतम्, १३ जिसका ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, नामक कृति प्राप्त होती है। ललितकीर्ति के चार शिष्यों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इनके प्रथम शिष्य राजहर्ष द्वारा रचित थावच्चासुगसेलगचौपाई (रचनाकाल वि० सं० १७०३); अरहन्नकचौपाई (वि० सं० १७३२), नेमिनाथफागु आदि कृतियां मिलती हैं ।" उक्त कृतियों की प्रशस्तियों में इन्होंने अपने गुरु ललितकीर्ति का सादर उल्लेख किया है। पुष्पहर्ष के दो शिष्यों शान्तिकुशल और अभयकुशल के बारे में जानकारी प्राप्त होती है । शान्तिकुशल द्वारा रचित यद्यपि कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु उनके शिष्य पूर्णप्रभ ने वि०सं० १७८६ में पुण्यदत्तसुभद्राचौपाई, गजसुकुमालचौपाई आदि की रचना की । १५ पूर्णप्रभ के शिष्य मानरत्न हुए जिन्होंने वि०सं० १७९६ में गोराबादलकथा की प्रतिलिपि की । १६ इसी शाखा के जयसौभाग्यगणि के शिष्य पं० चारित्रउदय ने वि०सं० १८४९ में श्रीपालराजारास की रचना की। १७ इनके गुरुभ्राता माणिक्यउदय गणि ने वि० सं० १८३० में कवि जिनहर्ष रचित कुमारपालरास की प्रतिलिपि की । १८ पं० चारित्रउदय ने अपने कृति की प्रशस्ति में अपनी लम्बी गुर्वावली न देते हुए मात्र अपने गुरु का ही उल्लेख किया है, यही बात माणिक्यउदय द्वारा लिखित
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