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स्त्री को तब तक मुक्ति की अधिकारी नहीं माना, जब तक वह पुरुष के रूप में पुन: जन्म न ले। इस सम्बन्ध में श्वेताम्बर सम्प्रदाय की विचारधारा अपेक्षाकृत उदार रही। इन्होंने नारी को न केवल मोक्ष का अधिकारी बताया अपितु यह भी स्वीकार किया कि नारी सर्वोच्च आध्यात्मिक गुण से सम्पन्न तीर्थङ्कर पद को प्राप्त कर सकती है। श्वेताम्बर जैन-परम्परा के आगम ग्रन्थों में प्रयुक्त “भिक्खु भिक्खुनी वा'' तथा “निग्गंठ निग्गंठी वा" शब्द से भी यह धोतित होता है कि अधिकांश नियम दोनों के लिये समान थे। परन्तु अधिकांश नियमों की समानता एवं सैद्धान्तिक उच्चादर्शों के बाद भी संघ में भिक्षु की तुलना में भिक्षुणी की स्थिति सदैव निम्न रही। संघ के नियमों के अनुसार तीन वर्ष का दीक्षित भिक्षु ३० वर्ष की दीक्षित भिक्षुणी का उपाध्याय बन सकता था तथा ५ वर्ष की दीक्षित भिक्षु ६० वर्ष की दीक्षित भिक्षुणी का आचार्य बन सकता था।२६ इसके अतिरिक्त संघ में आचार्य एवं उपाध्याय के पद केवल भिक्षुओं के लिये निर्धारित थे और कितनी भी योग्य भिक्षुणी क्यों न हो, वह इन उच्च पदों को धारण नहीं कर सकती थी। भिक्षुओं को यह विशेषाधिकार प्रारम्भ से ही प्राप्त रही। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं कि भगवान् महावीर के ग्यारह गणधरों में कोई भी नारी नहीं थी जबकि संख्या एवं तपस्या में वे सदैव अग्रणी रहीं।
छेदसूत्रों से स्पष्ट होता है कि कालान्तर में जैन संघ में "पुरुषज्येष्ठधर्म' के सिद्धान्त को अपना लिया गया जिसके अनुसार भिक्षु-भिक्षुणी से प्रत्येक अवस्था में श्रेष्ठ था
सव्वाहिं संजतीहिं, कितीकम्मं संजताण कायव्यं।
पुरिसुत्तरितो धम्मो, सव्वजिणाणं पि तित्थम्मि।। २७ इसी प्रकार १०० वर्ष की दीक्षित भिक्षुणी को भी सद्य: प्रव्रजित भिक्षु की वन्दना करने का विधान था- वह इसकी अवहेलना नहीं कर सकती थी
वरिससय दिक्खिआए अज्जाए अज्जादिक्खिओ साहू।
अभिगमण वंदण नमसंणेण विणएण सो पुज्जो।।२८ इसी प्रकार उपदेश देने का अधिकार केवल भिक्षु को था। संघ के नियमानुसार कोई भिक्षुणी किसी भिक्षु को उपदेश नहीं दे सकती थी। अपवादस्वरूप भिक्षुणी राजीमती द्वारा भिक्षु रथनेमि को उपदेश देने का अन्यतम उदाहरण प्राप्त होता है।२९ राजीमती के प्रति बोधात्मक उपदेशों का ही यह परिणाम था कि रथनेमि की आँखें खुल गयीं
और उन्होंने अपना शेष जीवन शाश्वत सत्य की खोज में लगाया। इसी प्रकार भिक्षुणी ब्राह्मी एवं सुन्दरी ने भी भिक्षु बाहुबलि को अहङ्काररूपी हाथी से नीचे उतरने का उपदेश दिया था; किन्तु इन अपवादों के अतिरिक्त और कोई भिक्षुणी उपदेशक के रूप में नहीं मिलती। इसकी पुष्टि अभिलेखों से भी होती है। अभी तक प्राप्त किसी जैन अभिलेख
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