________________
५९
पूर्वरचित व्याकरण ग्रन्थों को सन्दर्भ हेत हेमचन्द्र को उपलब्ध कराने की आज्ञा दी। हेमचन्द्र का व्याकरण ग्रन्थ पूर्ण होने पर सरस्वती ने अपने कश्मीर स्थित मन्दिर के पुस्तकालय के लिये स्वीकार भी किया था। प्रबन्धकोश में उल्लेख है कि एक बार हेमचन्द्र ने चौलुक्य कुमारपाल का पूर्वभव जानने के लिये सरस्वती नदी के किनारे सरस्वती देवी का आहवान किया। तीन दिनों के ध्यान के पश्चात् सरस्वती (विद्या देवी) स्वयम् उपस्थित हुई और उन्होंने हेमचन्द्र को कुमारपाल के पूर्वभवों के बारे में बताया। 'भैरवपद्मावतीकल्प' एवं 'भारतीकल्प' के रचनाकार मल्लिषेणसूरि (११वीं शती) भी सारस्वत शक्ति सम्पन्न थे। 'वसन्तविलास' के रचनाकार सिद्धसारस्वत बालचन्द्रसूरि (लगभग प्रारम्भिक १३वीं शती) ने भी सफलतापूर्वक सरस्वती की मान्त्रिक साधना की थी।
प्रबन्धकोश' के 'हरिहरप्रबन्ध' में भी सारस्वत शक्ति से सम्बन्धित एक कथा मिलती है। वस्तपाल के दरबार में गौड़कवि हरिहर ने गुजरात के कवि सोमेश्वर को अपमानित किया था। सोमेश्वर ने १०८ श्लोकों की रचना की और उसे वस्तुपाल और हरिहर को सुनाया। स्तोत्र सुनकर हरिहर ने कहा कि यह मूल रचना न होकर भोजदेव की रचना की अनुकृति है और हरिहर ने सम्पूर्ण स्तोत्र को ही दुहरा दिया। बाद में हरिहर ने वस्तुपाल को यह बताया कि सारस्वत मन्त्र की साधना के फलस्वरूप प्राप्त अपूर्व स्मरण शक्ति के कारण ही वे १०८ श्लोकों, षट्पद काव्य तथा अन्य अनेक बातों को केवल एक बार सुनकर ही याद रखने में सक्षम थे। इसी कारण वे सोमेश्वर के १०८ श्लोकों की तत्काल पुनरावृत्ति कर सके थे।
जैन-परम्परा में तान्त्रिक शैली में सरस्वती-आराधना के बहुत से उल्लेख प्राप्त होते हैं। सरस्वती की साधना के लिये बहुत से स्तोत्रों और मन्त्रों की रचना की गयी। इनमें प्राप्त सरस्वती के स्वरूप, वाहन और आयुधों से सम्बन्धित विवरणों में भिन्नता है। सरस्वती, कहीं दो, चार या उससे अधिक भुजाओं सहित चित्रित है और विविध आयधों से युक्त बतायी गयी हैं। श्वेताम्बर-परम्परा देवी को हंसवाहिनी मानती है जबकि दिगम्बर-परम्परा में वे मयूरवाहिनी हैं।
सरस्वती सम्बन्धी स्तोत्रों एवं ध्यान मन्त्रों एवं अन्य विवरणों आदि का अवलोकन करने पर एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह ज्ञात होता है कि इनमें सरस्वती की उत्पत्ति का कोई उल्लेख नहीं है। इसके विपरीत वैदिक साहित्य विशेषत: पुराणों में सरस्वती की उत्पत्ति सम्बन्धी कई कथानक प्राप्त होते है। कुछ पुराण सरस्वती को मूल प्रकृति का ही एक रूप बताते हैं, कहीं वह श्रीकृष्ण की शक्ति की जिह्वा से उत्पन्न बतायी जाती है। वायुपुराण के अनुसार ब्रह्मा के ही शरीर से महानाद करती हुई विश्वरूपा सरस्वती प्रकट हुई मानी गयी है और मत्स्यपुराण के आधार पर सरस्वती ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न हुई उनकी पुत्री बतायी जाती है।१२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org