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(१) त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र के पर्व १० सर्ग २ में(क) दधार त्रिशलादेवी मुदिता गर्भमद्भुतम् । ३३ । (ख) उपसृत्यागतो देव्याश्चावस्वापिकां ददौ। ५४ |
(ग) देव्याः पार्श्वे च भगवत्प्रतिरूपं निधाय सः । ५५ । (इ) उवाच त्रिशलादेवी सदने नस्त्वमागमः । १४१ ।
(२) महावीरचरियं में क्रमशः पत्र २८ और ३३ पर निम्न स्थलों पर देवी का प्रयोग है।
(क) तस्स घरे तं साहर तिसलादेवीए कुच्छिंसि । ५१ ।
(ख) सिद्धत्यो य नरिन्दो तिसलादेवी य रायलोओ या६८ ।
(७) डॉ० हार्नले के अनुसार तो सन्निवेश का अर्थ मुहल्ला है और डॉ० जाकोबी के मतानुसार उसका अर्थ 'पड़ाव' है। यहाँ दोनों ने शब्द के अर्थ का अनपयुक्त प्रयोग किया है, क्योंकि सन्निवेश के अर्थ बहुत से होते हैं और यहाँ यह अर्थ 'ग्राम' से है।
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(क) पाइअसद्दमहण्णवो के पृष्ठ १०५४ पर सन्निवेश के अर्थ में दिये हैं(१) नगर के बाहर का प्रवेश, (२) गाँव, नगर आदि स्थान । ( ४ ) ग्राम, गाँव आदि । (५) रचना आदि ।
(ख) भगवतीसूत्र के प्रथम खण्ड, पृष्ठ ८५ पर टीकाकार ने सन्निवश का अर्थ इस प्रकार लिखा है'सन्निवेशों घोषादिः, एषां द्वन्द्वस्ततस्तेषु, अथवा ग्रामादयो ये सन्निवेशास्ते तथा तेषु ।'
(ग) निशीथचूर्णि में सन्निवेश का अर्थ दिया है
'सत्थावासगत्थाणं सण्णिवेसो गामो वा पीडितो संनिविट्ठो जत्तागतो वा लोगो सन्निविट्ठो सो साण्णवेसं भण्णति ।'
अभिधानराजेन्द्र, भाग सप्तम, पृष्ठ ३०७.
(घ) बृहत्कल्पसटीक, विभाग- २, पत्र ३४२-३४५ पर सन्निवेश का अर्थ दिया है— 'निवेशो नाम यत्र सार्थ आवासितः, आदि ग्रहणेन ग्रामो वा अन्यत्र प्रस्थितः सन् यत्रान्तरावासमधिवसति यात्रायां वा गतो लोको यत्र तिष्ठति, एष सर्वोऽपि निवेश उच्यते । ११
(८) उवासगदसाओ में प्रयुक्त उच्चनीचमज्झिमकुलाई के आधार पर डॉ० हार्नले वाणियागाम के तीन भाग करने का प्रयत्न किया है। दुल्व में आये वैशाली के वर्णन के साथ उसका मेल बैठाने का प्रयत्न करके वैशाली और वाणियागाम को एक बताने
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