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का प्रयत्न किया है। जैन शास्त्रों में साधु के लिए नियम है कि साध कहीं भी- ग्राम, नगर, सनिवेश या कर्बट आदि में भिक्षार्थ जावे, वहाँ बिना वर्ग और वर्णविभेद के ऊँच, नीच और मध्यम कुलों में भिक्षा ग्रहण करे। जिस प्रकरण को डाक्टरसाहब ने उद्धृत किया है वहाँ भी भगवान् ने गौतमस्वामी को भिक्षा के लिए अनुज्ञा देते हुए ऊँच, नीच और मध्यम सभी वर्गों में भिक्षाग्रहण करने का आदेश दिया है। दशवैकालिकसूत्र हारिभद्रीयटीका, पत्र १६३ में साधु को निर्देश है- “गोचरः' उत्तमाधम-मध्यमकुलेष्वरक्तद्विष्टस्य भिक्षाटनम्' इसलिए इसे आधार बनाने का प्रयास व्यर्थ है। अन्तगडदसाओ में भी यह कहा गया है कि भगवान् ने पुलासपुर, द्वारका आदि में ऊँच, नीच और मध्यम कुलों में भिक्षा ग्रहण का आदेश दिया। भगवतीसूत्र आदि अन्य ग्रन्थों में भी ऐसा ही वर्णन आता है। इनकी तुलना दुल्व में आये वैशाली के प्रकरण से की जा सकती है?
इसी भाँति श्रीमती स्टीवेन्सन ने डॉ० हार्नले की गलतियों को दुहराने के साथ एक और भयंकर भूल यह भी कर दी है कि भगवान् को वैश्य-कुलोत्पन्न बताया है (देखें हार्ट ऑफ जैनिज्म, पृष्ठ २१-२) परन्तु इस स्थापना की किसी भी प्रमाण से पुष्टि नहीं होती।
आधुनिक मान्यता आजकल क्षत्रियकुण्ड को कहाँ माना जाता है, इसके लिए हमें श्री मुम्बई जैनस्वयंसेवक मण्डल रजतमहोत्सव स्मारकग्रन्थ, सम्वत् २००१, पृष्ठ ५० से परिचय प्राप्त हो जाता है। वहाँ लिखा है- 'लिच्छवाड और क्षत्रियकुण्ड-लक्खीसराय जंकशन उतर कर या तो बैलगाड़ी से अथवा मोटरबस द्वारा १८ मील दूर इस गाँव में आते हैं। बड़ी धर्मशाला के बीच में श्रीवीरप्रभु का मनोहर देवालय है। धर्मशाला से दक्षिण हाथ में क्षत्रियकुण्ड पहाड़ की ओर जाने का रास्ता पड़ता है, तलहटी २ मील है। वहाँ आमने-सामने दो छोटे-छोटे देवालय हैं। यहीं से पर्वत की चढ़ाई शुरू होती है। कठिन आधा रास्ता जाने के बाद और अधिक कठिन पथरीला मार्ग आता है। शेर, चीता का निवास होने से उजाला हो जाने के बाद चढ़ना अधिक सुरक्षित है। सपाट मैदान के बीच में किले वाला श्रीवीरप्रभु का देवालय है। यहीं पर अन्तिम तीर्थंकर (महावीरस्वामी) का चवन, जन्म और दीक्षारूप तीन कल्याणक हुए थे।"
जैनसिद्धान्तभास्कर, भाग १०, किरण २, पृष्ठ ६० पर दिगम्बरों की मान्यता इस प्रकार दी है- “नालन्दा से सटा हुआ लगभग दो मील की दूरी पर एक कुण्डलपुर नामक गाँव' भगवान् महावीर की जन्मभूमि है।
ये मान्यताएँ कुछ भ्रमों पर आश्रित हैं। जैसा कि हम ऊपर निर्देश कर चुके हैं कि भगवान् के विशेषणों-विदेह, वैदेहदत्त, विदेहजात्य और विदेहसुकुमाल तथा
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