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भगवान् महावीर के जन्मस्थान पर नया प्रकाश
मूल आलेख- श्री अजय कुमार सिन्हा अनुवादक* * - महेन्द्र कुमार नाहटा
जैनों के चौबीसवें व अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान् महावीर ने जैनधर्म की सुदीर्घ- परम्परा को और सुदृढ़ बनाया। अपने पूर्ववर्ती तीर्थङ्करों की तुलना में प्राचीन जैन ग्रन्थों में उनके जीवनवृत्त का विस्तार से पूर्ण उल्लेख मिलता है। आचाराङ्गसूत्र, जो श्वेताम्बर - परम्परा का सम्भवतः प्राचीनतम आगम ग्रन्थ है, में भगवान् महावीर के एक ब्राह्मणी- देवानन्दा की कुक्षि में प्रवेश से लेकर क्षत्रियकुण्डग्राम के क्षत्रिय शासक राजा सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला में गर्भान्तरण का पूर्ण उल्लेख उपलब्ध होता है। कल्पसूत्र में भी ऐसा ही वर्णन उपलब्ध होता है।
भगवान् महावीर के जन्मस्थान क्षत्रियकुण्डग्राम की भौगोलिक स्थिति के बारे में व्र मतभेद है। दिगम्बर सम्प्रदाय कुण्डलपुर को उनके जन्मस्थान के रूप में पूजित करता है, वहीं श्वेताम्बर सम्प्रदाय लछवाड़ के निकट जन्मस्थान को उनकी जन्मभूमि के रूप में वन्दना करता है। कुछ पाश्चात्य एवं भारतीय इतिहासविद् वैशाली को भगवान् महावीर की जन्मस्थली मानते हैं।
लेखक, जो एक पुरातत्त्वविद् है, ने उक्त सन्दर्भित तीनों स्थानों - कुण्डलपुर, लछवाड़ एवं वैशाली का सर्वेक्षण किया ताकि वास्तविक सत्य उद्घाटित हो सके। साहित्यिक, भूतत्व सम्बन्धी, भौगोलिक, पुरातत्त्व, भाषायी एवं ऐतिहासिक सन्दर्भों / प्रमाणों के आधार पर मैंने अपने निष्कर्ष स्थापित किये हैं।
साहित्यिक सन्दर्भ मूलतः आचाराङ्गसूत्र और कल्पसूत्र में सुरक्षित हैं। भगवान् महावीर ने ब्राह्मण कुण्डग्राम में निवास करने वाले ब्राह्मण ऋषभदेव की पत्नी देवानन्दा की कुक्षि में प्रवेश पाया था। कल्पसूत्र के अनुसार देवानन्दा ने निम्नलिखित चौदह वस्तुएँ स्वप्न में देखीं- हाथी, वृषभ, सिंह, गजलक्ष्मी, मालाओं का जोड़ा, चन्द्रमा, सूर्य, ध्वजपताका, मंगल कलश, पद्म सरोवर, सागर, देव विमान, रत्नराशि एवं प्रज्वलित अग्नि । तब देवराज शक्र (इन्द्र) के मस्तिष्क में यह विचार आया 'ऐसा कभी नहीं हुआ है, न ऐसा होता है कि अर्हत्, चक्रवर्ती, बलदेव या वासुदेव भूतकाल में, वर्तमान में अथवा भविष्य में किसी क्षत्रिय कुल के अलावा अन्य किसी कुल में उत्पन्न *. पुरातत्त्व विभाग, पटना. ** २० अगस्त क्रांति मार्ग, नई दिल्ली.
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