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वे वैशाली के निकट ब्राह्मण कुण्डग्राम, क्षत्रिय कुण्डग्राम, मौरका, मुमारा, कोल्लाग, अस्थिग्राम, जाम्भियग्राम, सुवर्णखाला, लोहागल्ल आदि नहीं इंगित कर पाये हैं। उन्होंने वासुकुण्ड को क्षत्रिय कुण्डग्राम तथा कोल्हआ को कोल्लाग के रूप में माना है, जो गलत प्रतीत होता है। पावापुरी तथा वैशाली के मध्य की दूरी पावापुरी और लछवाड़ के मध्य की दूरी से अधिक है। लछवाड़ से व्यक्ति घोड़े पर बैठकर एक दिन में पावापुरी पहुँच सकता है। उपरोक्त विद्वानों ने लछवाड़ के निकट स्थित महानकुण्डघाट, कुमार, कोल्लगा, अस्थवान, जमुई, लोहारा, मउरा आदि ग्रामों को खोजने का कष्ट नहीं किया, जो क्रमश: ब्राह्मण कुण्डग्राम, क्षत्रिय कुण्डग्राम, कुमारा, कोल्लाग, आतिथ्यग्राम, जाम्भियग्राम, लोहागल्ल, मौरका आदि थे। ये सभी स्थान वर्तमान लछवाड़ कोठी से बीस मील की परिधि में अवस्थित हैं। जन्मस्थल के निकट एक भग्न दुर्ग को देखा जा सकता है, जो भगवान् महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ से सम्बन्धित हो सकता है। यह अनेक पहाड़ियों की गोद में अवस्थित है। भगवान् महावीर के जन्म का दूसरा विवादित स्थान कुण्डलपुर भी पहाड़ियों से दूरी पर स्थित है।ये सभी प्रमाण लछवाड़ को भगवान् महावीर के जन्मस्थान होने का समर्थन करते हैं।
ऐतिहासिक तथ्य भी इस सन्दर्भ में वैशाली के विपरीत हैं। वैशाली के राजा चेटक के सात पुत्रियां थीं- प्रभावती, पद्मावती, मृगावती, शिवा, ज्येष्ठा, सुज्येष्ठा एवं चेल्लणा तथा एक बहिन त्रिशला थी। त्रिशला का विवाह क्षत्रियकुण्ड के राजा सिद्धार्थ के साथ हुआ था, प्रभावती का वत्स के राजा उदयन के साथ, पद्मावती का चम्पा के राजा दधिवाहन के साथ, मृगावती का कौशाम्बी के राजा शतानीक के साथ, शिवा का उज्जैन के राजा चण्डप्रद्योत के साथ, ज्येष्ठा का राजा के साथ, चेल्लणा का राजगृह के राजा श्रेणिक बिम्बसार के साथ हुआ। सुज्येष्ठा अविवाहित रही एवं श्रमणी बन गयी। चेटक एक शक्तिशाली राजा माने जाते थे, जिनकी तुलना मगध के राजा अजातशत्रु से की जाती थी, जो आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित भी थे। अत: हम यह पाते हैं कि भगवान महावीर को उत्तर भारत में अपने मौसेरे भाइयों की सहायता से अपने सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार में लाभदायक स्थिति प्राप्त थी। ये बड़े राजसी सम्बन्ध यह प्रमाणित करते हैं कि क्षत्रियकुण्ड एक महत्त्वपूर्ण साम्राज्य था एवं इसे वैशाली के राजा चेटक के अधीनस्थ नहीं माना जा सकता। इसके अलावा राजा अजातशत्रु ने वैशाली पर गम्भीर सैन्य आक्रमण किया तथा हलों (हलों की तरह तीक्ष्ण धार वाले अस्त्रों) की सहायता से इसे ध्वंस कर दिया। इससे यह प्रमाणित होता है कि वैशाली के राज्य को मगध के सम्राट ने जीत लिया था। यह घटना अवश्य ही भगवान् महावीर के जीवनकाल में घटित हुई। भगवान् महावीर के अग्रज राजा नन्दिवर्द्धन का क्षत्रियकुण्ड ग्राम में बचा रहना लछवाड़ को उनके जन्मस्थान के रूप में स्वीकार करने को बाध्य करते हैं। अंग पर पहले ही राजा अजातशत्रु ने आधिपत्य स्थापित कर लिया था। राजा नन्दिवर्द्धन का क्षत्रियकुण्ड ग्राम का दुर्ग बहुत सुदृढ़ था, जिसके कारण यह मगध
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