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है । एक योजन में ८ मील गिने जाते हैं। आजकल भी ऐसा ही है ।
९.
१०. श्रमण भगवान् महावीर नामक पुस्तक के पृष्ठ पाँच पर स्थिति इस प्रकार बताई गई है - "वैशाली के पश्चिम परिसर गण्डकी नदी बहती थी। उसके पश्चिम तट पर स्थित ब्राह्मणकुण्डपुर, क्षत्रियकुण्डपुर, वाणिज्यग्राम, कर्मारग्राम और कोल्लाकसन्निवेश जैसे अनेक रमणीय उपनगर और शाखापुर अपनी अतुलसमृद्धि से वैशाली की श्रीवृद्धि कर रहे थे।" हमारी सम्मति में यह स्थिति ठीक नहीं है।
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श्री बलदेव उपाध्याय ने धर्म और दर्शन में पृष्ठ ८५ पर इसी मान्यता को दोहराया है। प्रतीत होता है कि विद्वान् लेखक भी उसी भ्रांति के शिकार हुए हैं। ११. श्री महावीर कथा (सम्पादक : गोपालदास जीवाभाई पटेल) में पृष्ठ ७९ से के बीच डॉ० हार्नले के आधार पर राजा सिद्धार्थ को सामान्य क्षत्रिय बताते हुए भी उसके राजत्व को स्वीकार कर लिया है। (देखें पृष्ठ ७९ ) । इसी प्रकार विदेह, मिथिला, वैशाली और वाणिज्यग्राम को एक मान लिया है, जिसका ऊपर प्रतिवाद कर दिया गया है एवं पृष्ठ ८१ पर 'कुल' का अर्थ घर किया है जो कि ठीक नहीं है। इसका अर्थ 'घराना' हो सकता है घर नहीं । पृष्ठ २८९ पर आनन्द को ज्ञातकुल का लिखा गया है जो कि नितान्त भ्रान्तिजनक है; आनन्द कौटुम्बिक था, न कि ज्ञातृक ।
१२. इसी वैशाली में जो कुण्डग्राम है वही श्रीमहावीरस्वामी का जन्मस्थान है। वहाँ पर तीर्थंकरों की मूर्तियों के निकलने से भी यह बात प्रगट है । प्राचीन जैनस्मारक, ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी, पृष्ठ २८.
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