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(३) अभिधानराजेन्द्र, भाग ६ पृष्ठ १३६७ पर लिखा है--
बहिआ य णायसंडे आपुच्छित्ताण नायए सव्वे।
दिवसे मुहुत्तसेसे कम्भारगामं समणुपत्तो।। बर्हिधा च कुण्डपुरात् ज्ञातखण्ड उद्याने, आपृच्छ्य ज्ञातकान् स्वजनान्; सर्वान्-यथासनिहितान्, तस्मात् निर्गतः, कर्मारग्राम गमनायेति वाक्यशेषः। तत्र च पथद्वयम्। तत्र च एको जलेन, अपरः स्थल्याम्, तत्र भगवान् स्थल्यां गतवान्, गच्छंश्च दिवसे मुहूर्तशेषेकर्मारग्रामं समनुप्राप्त इति गाथार्थः।...... तद्दिवसं सामिस्स छट्ठपारणयं, तओ भगवं विहरमाणे गओ कोल्लागसण्णिवेसे, तत्थ य भिक्खट्ठा पविट्ठो बहुलमाहणगेहं, जेणामेव कुल्लाएसिन्नवेसे बहुले माहणे। तेण महुधयसंजुत्तेण परमण्णेण पडिलाभिओ।
अर्थात् कुण्डपुर के बाहर के ज्ञातखण्ड उद्यान में अपने ज्ञातिक बन्धुओं से पूछकर कर्मारग्राम की ओर चल दिये। वहाँ जाने के दो रास्ते थे— एक जलमार्ग, दूसरा स्थलमार्ग। भगवान् स्थल-मार्ग से चले और दिन समाप्त होने में एक मुहूर्तशेष होने पर वहाँ पहुँचे। (रात में कारग्राम रहे, दूसरे दिन)...... कोल्लाग में प्रवेश करने का दिन षष्ठपारणा (दो उपवासों की पारणा) का था, कोल्लागसत्रिवेश में जाने पर भगवान् वहाँ भिक्षार्थ बहुल नाटक ब्राह्मण के घर में प्रविष्ट हुए। वहाँ बहुलब्राह्मण ने मधुघृतयुक्त खीर से पारणा कराया।
कुण्डपुर (क्षत्रियकुण्ड) से कर्मारग्राम जाने के लिये भगवान् को नदी पार करनी पड़ती थी। त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र में लिखा है
ततः प्रतस्थे भगवान् ग्राम वाणिजकं प्रति। मार्गे गण्डकिकां नाम नदी नावोत्ततार च।।
त्रि०प० पु०च०, दशमपर्व, सर्ग ४, श्लोक १३९. अर्थात् वैशाली से वाणिजकग्राम की ओर जाने के लिए भगवान ने गण्डकी को पार किया। इससे प्रतीत होता है कि ये सब ग्राम एक दूसरे निकट थे---- वैशाली, कुण्डपुर, कर्मारग्राम, कोल्लाग पास-पास थे।
(४) वैशाली और वणिकग्राम निकटस्थ थे।
वेसालिं नगरिं वाणियगाम च नीसाए दुवालस अन्तरावासे वासावासं उवागए।..... वैशाल्या: नगर्याः वाणिज्यग्रामस्य च निश्रया द्वादश चतुर्मासकानि वर्षावासार्थमुपागतः।
अभिधानराजेन्द्र, भाग ६, पृष्ठ १३८४. (५) अभिधानराजेन्द्र, भाग २, पृष्ठ १०९ से ११२ में वाणिज्यग्राम, द्विपलाशचैत्य और कोल्लागसनिवेश को निकट-निकट बताया है।
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