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वैशालिक से यही प्रतीत होता है कि भगवान् का विदेहान्तर्गत वैशाली के साथ बहुत कुछ सम्बन्ध है और उसके अतिनिकटस्थ स्थान में उनकी जन्मभूमि होना सम्भव है। इसके अतिरिक्त उनके बहुशालचैत्य में स्थिति से भी उनका इस स्थान से सम्बन्ध प्रतीत होता है और वैशाली में किये गये बारह वर्षावास भी इसी का प्रतिपादन करते हैं। मुनिकल्याणविजयजी ने अपने पुस्तक श्रमण भगवान् महावीर में इसी स्थापना की पुष्टि की है। आप उसी पुस्तक की भूमिका में पृष्ठ २७ पर लिखते हैं
(१) भगवान् की दीक्षा के दूसरे दिन कोल्लाकसन्निवेश में पारणा करने का उल्लेख है। जैनसूत्रों के अनुसार कोल्लाक- सन्निवेश दो थे— एक वाणिज्यगांव के निकट और दूसरा राजगृह के समीप । यदि भगवान् का जन्म स्थान आजकल का क्षत्रियकुण्ड होता तो दूसरे दिन कोल्लाक में पारणा होना असम्भव था, क्योंकि राजगृह वाला कोल्लाक- सन्निवेश वहाँ से कोई चालीस मील दूर पश्चिम में पड़ता था और वाणिज्यग्राम वाला कोल्लाक इससे भी बहुत दूर । इससे यही मानना तर्कसंगत होगा कि भगवान् ने वैशाली के निकटवर्ती क्षत्रियकुण्ड के ज्ञातखण्डवन में प्रव्रज्या ली और दूसरे दिन वाणिज्यग्राम के समीपवर्त्ती कोल्लाक में पारणा किया।
(२) क्षत्रियकुण्ड में दीक्षा लेकर भगवान् ने कर्मारग्राम, कोल्लाकसन्निवेश, मोराकसन्निवेश आदि में विहार कर अस्थिकग्राम में वर्षा चातुर्मास बिताया और चातुर्मास के बाद भी मोराक, वाचाला, कनकखल आश्रमपद और श्वेविका आदि स्थानों में विचरने के उपरान्त राजगृह की ओर प्रयाण किया और दूसरा वर्षावास राजगृह में किया था ।
उक्त विहार-वर्णन में दो मुद्दे ऐसे हैं जो आधुनिक क्षत्रियकुण्ड असली क्षत्रियकुण्ड नहीं है, ऐसा सिद्ध करते हैं। एक तो भगवान् प्रथम चातुर्मास के बाद श्वेतविका नगरी की तरफ जाते हैं और दूसरा यह कि उधर से विहार करने के बाद आप गंगानदी उतरकर राजगृह जाते हैं।
श्वेतविका श्रावस्ती से कपिलवस्तु की तरफ जाते समय मार्ग में पड़ती थी। यह भूमिप्रदेश कोशल के पूर्वोत्तर में और विदेह के पश्चिम में पड़ता था और वहाँ से राजगृह की तरफ जाते समय बीच में गंगा पार करनी पड़ती थी, यह भी निश्चित है। आधुनिक क्षत्रियकुण्डपुर के आसपास न तो श्वेतविकानगरी थी और न उधर से राजगृह जाते समय गंगा ही पार करनी पड़ती थी। इससे ज्ञात होता है कि भगवान् की जन्मभूमि आधुनिक क्षत्रियकुण्ड जो आजकल पूर्व बिहार में गिद्धौर स्टेट में और पूर्वकालीन प्रादेशिक सीमानुसार अंगदेश में पड़ता है— नहीं है, किन्तु गंगा से उत्तर की ओर उत्तर बिहार में कहीं थी और वह स्थान पूर्वोक्त प्रमाणों के अनुसार वैशाली के निकटवर्ती क्षत्रियकुण्ड ही हो सकता है। श्रमण भगवान्महावीर
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