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"तेण कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे णामं णयरे होत्था।....... वण्णओ तस्स णं वाणियग्गामस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए दूयपलासे चेइए।..... तस्स णं वाणियग्गामस्स वहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए तत्थ णं कोल्लागए णामं सत्रिवेसेहोत्था।....... वाणियग्गामे णयरे मझमज्झेणं णिग्गच्छइ २ ता जेणेव कोल्लाए 'सन्निवेसे जेणेव नायकुले जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ।..... तं एणं से भगवं गोयमे वाणियग्गामे नगरे जाव भिक्षायरिय जाव अडमाणो अहापज्जत्तं भत्तपाणं संमं पडि२ वाणि० पडिनिग्गच्छइ २ त्ता कोल्लायस्स सत्रिवेसस्स अदूरसामंतेणं वीतिवयमाणे बहुजणसदं णिसामेइ बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ।
अर्थात् वाणिज्यग्राम के बाहर उत्तरपूर्व द्विपलाशचैत्य था, उसी वाणिज्यग्राम के उत्तरपूर्व में कोल्लागसनिवेश था।....... वाणिज्यग्राम नगर के बीच में से निकल जहाँ कोल्लागसन्निवेश है, जहाँ ज्ञातकुल है, जहाँ पोषधशाला है, वहाँ (आनन्द श्रावक) आयो..... - भगवान् गौतम ने भिक्षा लेने के बाद वाणिज्यग्राम से वापिस लौटते हुए कोल्लागसनिवेश के निकट आपस में विचार विमर्श करते बहुत से लोगों को देखा।
उपसंहार अब हम संक्षेप में इस परिणाम पर पहुँचते हैं
(१) आधुनिक स्थान जिसे क्षत्रियकुण्ड कहा जाता है और जिसे लिच्छुआड़ के पास बताया जाता है, मुंगेर जिले के अन्तर्गत है। महाभारत में इस प्रदेश को एक स्वतन्त्र राज्य 'मोदगिरि' के नाम से उल्लेख किया है, जो कि बाद में अंगदेश से मिला दिया गया था। अर्थात् प्राचीन ऐतिहासिक युग में यह स्थान विदेह में न होकर अंग देश अथवा मोदगिरि-अन्तर्गत था। इसलिए भगवान् की जन्मभूमि यह स्थान नहीं हो सकती।
(२) आधुनिक क्षत्रियकुण्ड पर्वत पर है जब कि प्राचीन क्षत्रियकुण्ड के साथ शास्त्रों में पर्वत का कोई वर्णन नहीं मिलता। वैशाली के आसपास क्योंकि पहाड़ नहीं हैं इसलिए भी वही स्थान भगवान् का जन्मस्थान अधिक सम्भव प्रतीत होता है।
(३) आधुनिक क्षत्रियकुण्ड की तलहटी में एक नाला बहता है जो कि गण्डकी नहीं है। गण्डकी नदी आज भी वैशाली के पास बहती है।
(४) शास्त्रों में क्षत्रियकुण्ड को वैशाली के निकट बताया है जबकि आधुनिक स्थान के निकट वैशाली नहीं है।
(५) विदेह देश तो गंगा के उत्तर में है जबकि आधुनिक क्षत्रियकुण्ड गंगा के दक्षिण में है।
इनसे यह स्पष्ट है कि भ्रांतिवश लिच्छआड़ के निकट पर्वत के ऊपर के स्थान
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