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यहाँ से पश्चिम की ओर तीन-चार ली पर एक स्तुप है। बद्धदेव के परिनिर्वाण से सौ वर्ष बाद वैशाली के भिक्षुओं ने विनय-दश शील के विरुद्ध आचरण किया।
___ इस स्थान से ४ योजन चलकर पाँच नदियों के संगम पर पहुँचे। आनन्द मगध से वैशाली परिनिर्वाण के लिये चले। देवताओं ने अजातशत्रु को सूचना दी। अजातशत्रु तुरंत रथ पर चढ़ सेना साथ लिये नदी पर पहुँचा। वैशाली के लिच्छवियों ने आनन्द का आगमन सुना, लेने को चले, नदी पर पहुँचे। आनन्द ने सोचा- आगे बढ़ता हूँ तो अजातशत्रु बुरा मानता है, लौटता हूँ तो लिच्छवी रोकते हैं। निदान नदी के बीच में ही समाधित्रेताग्नि में उन्होंने परिनिर्वाण लाभ किया। शरीर को दो भागों में विभक्त कर एक-एक भाग दोनों किनारों पर पहुँचाया गया। दोनों राजाओं को आधा-आधा शरीरांश मिला। वे लौट आए और उन्होंने स्तूप बनवाया।"
__ ह्वेनसांग ने अपने यात्रा-प्रकरण में लिखा है- “इस राज्य का क्षेत्रफल लगभग पाँच हजार ली है--- भूमि उत्तम और उपजाऊ है, फल और फूल बहुत अधिक होते हैं, विशेषकर आम्र और मोच (केला) तथा लोग इनकी कदर भी बहुत करते हैं। प्रकृति स्वाभाविक और सह्य है तथा मनुष्यों का आचरण शुद्ध और सच्चा है। ये लोग धर्म से प्रेम और विद्या की बड़ी प्रतिष्ठा करते हैं। विरोधी और बौद्ध दोनों मिलकर रहते हैं। कई सौ संघाराम यहाँ पर थे परन्त सब के सब खंडहर हो गये हैं, जो दो-चार बाकी हैं उनमें या तो साध नहीं है और यदि हैं तो बहुत कम। दस-बीस मन्दिर देवताओं के हैं जिनमें अनेक मतानुयायी उपासना करते हैं।
वैशाली का प्रधान नगर अत्यन्त ऊजड़ है। इसका क्षेत्रफल ६० से ७० ली तक और राजमहल का विस्तार चार या ५ ली के घेरे में है। बहत थोड़े से लोग इसमें निवास करते हैं। राजधानी के पश्चिमोत्तर पाँच या छह ली दूरी पर एक संघाराम है। इसमें कुछ साधु रहते हैं। ये लोग सम्मतीयसंस्था के अनुसार हीनयानसम्प्रदाय के अनुयायी हैं।"
क्षत्रियकुण्ड बसाढ़ के निकट बासुकुण्ड स्थान है जो कि प्राचीन क्षत्रियकुण्ड ग्राम है। जैनशास्त्रों में इसका स्थान-निर्देश करते हुए लिखा है(१) अस्थि इह भरहवासे मज्झिमदेसस्स मण्डणं परमं। सिरिकुण्डगामनयरं वसुमइरमणीतिलयभूयं।७।
नेमिचन्द्रसूरिकृत महावीरचरितम्, पत्र २६ भारत के मज्झम (मध्यमदेश) में कुण्डग्राम नगर है।
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