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मिट्टी के पदार्थ, मूर्तियाँ और सिक्के पाये गये हैं। मिट्टी का बना दीवट (दीपधानी) भी उनमें एक है। गले में पहनने की कई चीजें भी मिली हैं। गढ़ और चकरामदास के बीच लगभग आध मील लम्बा एक पोखर है जो कि घोड़दौड़ नाम से प्रसिद्ध है। चकरामदास के दक्षिण-पश्चिम में कुछ ऊँचे स्थल हैं जिन पर प्राचीन खण्डहर पाये गये हैं।
कोल्हुआ
गढ़ से उत्तर-पश्चिम में दो मील पर कोल्हुआ में अशोक का स्तम्भ (बखरा से दक्षिण-पूर्व दिशा में १ मील) स्तूप और मर्कटह्रद (आधुनिक नाम रामकुण्ड) हैं। वैशाली के सम्बन्ध में ह्वेनसांग ने जो वर्णन किया है वह इसके बिल्कुल मेल खाता है। ह्वेनसांग ने वैशाली के राजप्रासाद की परिधि ४-५ ली लिखी है और गढ की परिधि ५००० फीट से कुछ कम है, ये दोनों स्थितियाँ एक दूसरे के बहुत निकट हैं। इस चीनी परिव्राजक ने लिखा है- "उत्तर-पश्चिम में अशोक द्वारा बनवाया हुआ एक स्तूप और ५० या ६० फीट ऊँचा पत्थर का एक स्तम्भ था, जिसके शिखर पर सिंह अवस्थित था। स्तम्भ के दक्षिण एक पोखर था। जब बुद्ध इस स्थान पर रहते थे, तब उनके उपयोग के लिये यह खोदा गया था। पोखर से कुछ दूर पश्चिम में एक दूसरा स्तूप था। यह उस स्थान पर बना था, जहाँ बन्दरों ने बुद्ध को मधु अर्पित किया था। पोखर के उत्तर-पश्चिम कोने पर बन्दर की एक मूर्ति थी।' आजकल स्थिति यह है- कोल्हुआ में एक स्तम्भ है, जिस पर सिंह की मूर्ति है। इसके उत्तर में अशोक निर्मित एक स्तूप है; स्तूप के दक्षिण की ओर रामकुण्ड नाम से प्रसिद्ध एक पोखर है जो कि बौद्ध-इतिहास में कर्मटहृद नाम से प्रसिद्ध है।
अशोक-स्तम्भ 'भीम की लाठी' के नाम से यहाँ प्रसिद्ध है। यह जमीन से २१ फीट ९ इंच ऊँचा है। स्तम्भ का ऊपरी भाग २ फीट १० इंच ऊँचा है और घण्टी के आकार का है। इसके ऊपर प्रस्तरखण्ड है जिस पर सिंह उत्तराभिमुख बैठा है। जनरल कनिंघम ने १४ फीट नीचे तक इसकी खुदाई कराई थी और तब भी इसे इतना ही चिकना पाया था जितना ऊपर है। स्तम्भ से उत्तर में २० गज की दूरी पर एक ध्वस्त स्तूप है। यह १५ फीट ऊँचा है, धरती पर इसका व्यास ६५ फीट है, इसमें लगी ईंटें १२"४९१४."४२१/,' हैं। स्तूप के ऊपर एक आधुनिक मन्दिर है, इसमें बोधिवृक्ष के नीचे भूमिस्पर्शमुद्रा में बैठे बुद्ध की एक विशाल मूर्ति है जो मुकुट, हार और कर्णाभूष्क्षण पहने है। बुद्ध के सिर के दोनों ओर बैठी मूर्तियाँ मुकुट और आभूषण पहने हैं। उनके हाथ इस प्रकार हैं, मानों वे प्रार्थना कर रही हों। इन दोनों छोटी मूर्तियों में प्रत्येक के नीचे निम्न-पंक्तियाँ नागरी में लिखी हैं
(१) देयधम्मोयम् प्रवरमहायानयायिनः करणिकोच्छाहः (=उत्साहस्य) मा (1) णक्य-सुतस्य,
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