________________
३९
इससे प्रगट है दोनों नगर न केवल पृथक्-पृथक् थे अपितु दोनों के बीच गण्डकी नदी भी बहती थी।
(२) ऊपर हमने सप्रमाण यह स्थापना है कि वैशाली, ब्राह्मणकुण्ड और क्षत्रियकुण्ड गण्डकी के पूर्वीतट पर थे और कर्मारग्राम, कोल्लागसनिवेश, वाणिज्यग्राम तथा द्विपलाशचैत्य पश्चिमीतट पर।१० ये वस्तुत: एक ही नगर के भिन्न दो नाम नहीं थे। स्थान-स्थान पर भगवान् का एक नगर से दूसरे नगर में जाने का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। इसके अतिरिक्त जहाँ कहीं दो नगरों का नाम एकत्र आया भी है उसे वर्तमान प्रयोग की भाँति समझना चाहिये। जैसे हम भाषा में कह देते हैं कि दिल्ली-आगरा, जयपुर-जोधपुर, लाहौर-अमृतसर, बनिया-बसाढ़। यहाँ इकट्ठे इस प्रयोग का अभिप्राय केवल उनकी निकटता को बताना होता है।
(३) डॉ० हार्नले ने कोल्लाकसन्निवेश के निकट एक द्विपलाश चैत्य उद्यान (दूइपलास उज्जाण) और उस पर नायकुल का अधिकार बताया है। उनकी सम्मति में नायसण्डवण उज्जाण और दूइपलास उज्जाण एक ही थे। उन्होंने जिन ग्रन्थों के प्रमाण दिये हैं उनके अनुसार दुइपलास उज्जाण तो वाणिज्यग्राम के उत्तर-पूर्व में था और नायसण्डवण उज्जाण (ज्ञातखण्डवन उद्यान) कुण्डपुर (क्षत्रियकुण्ड) के बाहर था।
(क) विपाकसूत्र में लिखा है
तस्स ण वाणियगामस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए दुईपलासे नाम उज्जाणे होत्था। विवागसुयं, पृष्ठ १६..
(ख) कल्पसूत्र सुबोधिनी टीका सहित, पत्र १११ में लिखा है
कुण्डपुरं नगरं मझमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जणेव नायसंडवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ। __इन दोनों उद्धरणों से स्पष्ट है कि नायसांडण और दुइपलास उज्जाण दोनों भन्न-भिन्न हैं।
(४) डॉ० हानले और डॉ० जैकोबी दोनों ने ही सिद्धार्थ को राजा न मानकर अमीर अथवा एक सरदार माना है। उनका विचार है कि दो एक स्थानों के अतिरिक्त प्रन्थों में सिद्धार्थ के साथ क्षत्रिय शब्द का ही प्रयोग किया गया है। परन्तु इसके विपरीत जैन ग्रन्थों में न केवल सिद्धार्थ को राजा कहा गया है अपितु उनके आधीनस्थ अन्य लोगों का भी वर्णन किया गया है। कल्पसूत्र में लिखा है- “तए णं से सिद्धत्थे राया तेसलाए खत्तियाणीए......" इसमें सिद्धार्थ को राजा बतलाया गया है (क०स० सटीक, पत्र ५८)। आगे चलकर पत्र ६७ में लिखा है कि "कप्परुक्खएवि व अलंकियविभसिए परिंदे, सकोरिटमल्लदामेणं छ तेणं धरिज्जमणेणं सेयवरचामराहिं उद्धुनामाणीहिं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org