________________
३७
भ्रान्त स्थापनाएँ डॉ० हार्नले और डॉ० जाकोबी ने जैनशास्त्रों पर विवेचना करते हुए कुछ ऐसी स्थापनाएँ की हैं, जिनमें भ्रम हो सकता है। आपके मन्तव्यानुसार
(१) वाणियगाम (सं० वाणिज्यग्राम) यह वैशाली नाम से सुप्रसिद्ध शहर का दूसरा नाम था।
- महावीर तीर्थकरनी जन्मभूमि (डॉ० हार्नले का लेख), जैन साहित्यसंशोधक, खण्ड १, अंक ४, पृष्ठ २१८।
(२) कुण्डगाम नाम भी वैशाली का ही था और वैशाली ही भगवान् की जन्मभूमि थी। - डॉ० हार्नले का उपरोक्त लेख
१९३० में डॉ० जाकोबी ने एक लेख में लिखा था कि वैशाली— मूल वैशाली, वाणियगाम और कुण्डगाम इन तीन का समूह था। कुण्ड गाम में कोल्लाक एक मुहल्ला था।
- भारतीयविद्या (सिंघी स्मृतिग्रन्थ), पृष्ठ १८६ (३) इस कोल्लाग-सन्निवेश से सम्बद्ध परन्तु उससे बाहर द्विपलाश नाम का एक चैत्य था, साधारणचैत्य की भाँति उसमें एक मन्दिर और उसके आसपास उद्यान था। इस कारण से विपाकसूत्र (१,२) में उसे 'दूइपलासउज्जाण' रूप में लिखा गया है; और वह नायकुल का ही था इसलिए उसका 'नायसण्डवणे उज्जाणे' अथवा 'नायसण्डे उज्जाणे' इत्यादि (कल्पसूत्र ११५ और आचारांगसूत्र २; १५ सू०, २२) वर्णन किया गया है।
जैनसाहित्यसंशोधक, खं० १, अं० ४, पृष्ठ २१९. (४) महावीर के पिता सिद्धार्थ कुण्डगाम अथवा वैशालीनगर के कोल्लाग नाम के मोहल्ले में बसने वाली नायजाति के क्षत्रियों के मुख्य सरदार थे।.... सिद्धार्थ का कुण्डपुर अथवा कुण्डगाम के राजा के रूप में सर्वत्र वर्णन नहीं किया गया। अपितु इसके विपरीत सामान्य रूप में उन्हें एक साधारण क्षत्रिय (सिद्धत्थे खत्तिये) रूप में वर्णन किया है। जो एक दो स्थानों पर उन्हें राजा (सिद्धत्ये राया) रूप में लिखा गया है, उसे अपवाद ही समझना चाहिये।
- डॉ० हार्नले का उपरोक्त लेख सिद्धार्थ एक बड़े राजा नहीं अपितु अमीर मात्र थे।
(लेख- डॉ० हर्मन जैकोबीनी जैनसूत्रोनी प्रस्तावना, अनुवादक- शाह अम्बालाल चतुरभाई)
जैनसाहित्यसंशोधक, खं० १, अं० ४, पृष्ठ ७१.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org