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में बहुशालचैत्य में आकर ठहरे। इस सम्पूर्ण कथा को भगवतीसूत्र के तीसरे भाग में पृष्ठ १६२ से प्रारम्भ किया है। उसमें लिखा है
___ "तस्स णं महाणकुंडग्गामस्स णयरस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं खत्तियकुंडग्गामे नाम नयरे होत्था।"
ब्राह्मणकुण्डग्राम की पश्चिमदिशा में क्षत्रियकुण्डग्राम था। इसी क्षत्रियकुण्डग्राम में जमालि नामक क्षत्रिक-कुमार रहता था। जब भगवान् के बहुशालचैत्य में पहुँचने की सूचना क्षत्रियकुण्ड में पहुँची तो वहाँ से एक बड़ा जन-समूह क्षत्रियकुण्ड के बीच में से होता हुआ ब्राह्मणकुण्ड की ओर चला। जहाँ बहुशालचैत्य है, वहाँ आया। इस भीड़ को देखकर जमालि भी वहाँ गया। भगवतीसूत्र में लिखा है--
"जाव एगाभिमुहे खत्तियकुंडग्गामं नयरं मज्झ मझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छिइत्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव बहुसालए चेइए....."
भगवान् के प्रवचन से जमालि के हृदय में भी दीक्षा लेने की इच्छा उत्पन्न हुई। इसलिए वह अपने माता-पिता की अनुज्ञा-प्राप्त करने पुन: खत्तियकुंड लौटा। अनुज्ञा प्राप्त करने के बाद एक विशाल जनसमूह के साथ
___ “सत्थवाहप्पभियओ पुरओ संपट्ठिया खत्तियकुंडग्गामे नयरे म मज्झेणं जेणेव माहणकुण्डग्गामे नयरे, जेणेव बहुसालए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।"
क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के बीचोंबीच में से निकलकर ब्राह्मणकुण्ड ग्राम की ओर बहुशालचैत्य में जहाँ भगवान् महावीरस्वामी थे वहाँ (जमालि) आया।
इस वर्णन से स्पष्ट है कि क्षत्रियकुण्ड के निकट ही ब्राह्मणग्राम का होना सम्भव है।
इस क्षत्रियकुण्डग्राम में क्योंकि 'ज्ञात' क्षत्रिय रहते थे, इस कारण बौद्ध ग्रन्थों में इसे ज्ञातिक अथवा जातिक वा नातिक कहकर उल्लेख किया गया है। नातिक के अतिरिक्त नादिक भी इसे लिखा गया है। नामभेद के सम्बन्ध में चर्चा है(१) 'संयुक्तनिकाय की बुद्धघोष की सारत्थप्पकासिनी टीका में लिखा है
'जातिकेति द्विनं जातकानां गामे' (२) 'दीघनिकाय की सुमंगलविलासिनी टीका में लिखा है
नादिकाति एतं तलाकं निस्साय द्विण्णं चुल्लपितु महापितुपुत्तानं वे गामा। नादिकेति एकस्मि आतिगामे।"
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