________________
की ओर १६५५ फीट तथा पश्चिम की ओर १६५० फीट विस्तृत है। आस-पास के खेतों से खण्डहरों की औसत ऊँचाई करीब ८ फीट है। इसके तीन ओर दक्षिण भाग को छोड़कर- एक खाई सी है। यह इस समय १२५ फीट चौड़ी है, परन्तु कनिंघम ने इसकी चौड़ाई २०० फीट लिखी है। जिससे गढ़ के तीन ओर जलाशय होने का सन्देह होता है। दक्षिण पार्श्व से वर्षा और शीतकाल में गढ़ पर जाया जा सकता है।
गढ़ के निकट लगभग ३०० गज दक्षिण-पश्चिम में एक स्तूप है। यह ईंटों का बना है और आस-पास के खेतों से २३ फीट ८ इंच ऊँचा है। धरती पर इसका व्यास १४० फीट है। इस स्तूप की चर्चा चीनी यात्रियों ने नहीं की है। यहाँ स्तूप के किनारे के समीप खोदने से मध्ययुग के दो सुन्दर प्रस्तर-स्तम्भ मिले हैं।
गढ़ के पश्चिम की ओर, बावन पोखर के उत्तरी भीटे पर एक छोटा सा आधुनिक मन्दिर है। वहाँ कितनी ही मध्यकालीन खण्डित बुद्ध, बोधिसत्व, विष्णु, हर-गौरी, गणेश, सप्तमातृका एवं जैनतीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण जो चीजें मिली हैं, वह है महाराजाओं, महारानियों तथा दूसरे अधिकारियों की स्वनामाङ्कित कई सौ मुहरें। उन मोहरों पर जो कुछ लिखा है उसके कुछ नमूने निम्न हैं।
१. महाराजाधिराजश्रीचन्द्रगुप्त-पत्नी महाराजश्रीगोविन्दगुप्तमाता महादेवी श्री ध्रुवस्वामिनी।
२. श्रीयुवराज-भट्टारक-पादीयकुमारामात्याधिकरणस्य ३. (दा)ण्ड पाशाधिकरण (स्य) ४. तीरभुक्त्युपरिकाधिकरणस्य ५. तीरभुक्तौ विनयस्थितिस्थाप(क) आधिकरण(स्य) ६. तीरकुमारामात्याधिकरण (स्य) ७. (वै) शाल्यधिष्ठानाधिकरण
जनश्रुति के अनुसार यहाँ ५२ पोखर (पुष्करिणी) थे। परन्तु जनरल कनिंघम केवल १६ का पता पा सके। वैशाली के राजाओं के राज्याभिषेक के लिये इन पोखरों का जल काम में लाया जाता रहा होगा। बनिया और चकरामदास
बसाढ़ गढ़ से उत्तर-पश्चिम में लगभग १ मील दूर बनियागाँव है, इसका दक्षिणी भाग चकरामदास कहलाता है। एच०बी०डब्ल्यू० गैरिक ने यहाँ दो प्रस्तर मूर्तियाँ होने का उल्लेख किया है, जो २'२"x१४"-३” और १'१०"x१४३" थीं। यहाँ कई
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org