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ये २५।। आर्यदेश सर्वदा के हैं। इनका उल्लेख प्रज्ञापनासूत्र, सूत्रकृताङ्ग की टीका, प्रवचनसारोद्धार आदि में भी है। परन्तु भगवान् महावीरस्वामी के समय में आर्यक्षेत्र की मर्यादा निम्न थी
“कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पुरत्थिमेणं जाव अंगमगहाओ एत्तए, दक्खिणेणं जाव कोसम्बीओ, पच्चत्थिमेणं जाव थूणाविसयाओ, उत्तरेणं जाव कुणालाविसयाओ एत्तए। एताव ताव कप्पइ। एताव ताव आरिएखेत्तेणो से कप्पइ एत्तो बाहिं। तेण परं जत्थ नाण-दसणचरित्ताई उस्सप्पति त्ति बेमि।' अस्य व्याख्या- कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निग्रन्थीनां पूर्वस्यां दिशि यावदङ्ग-मगधान् ‘एतं' विहर्तुंम्। अङ्ग नाम चम्पाप्रतिबद्धा जनपदः, मगधाराजगृहप्रतिबद्धो देशः। दक्षिणस्यां दिशि यावत् कोशाम्बीमेतुम्। प्रतीच्यां दिशि स्थूणाविषयं यावदेतुम्। उत्तरस्यां दिशि कुणालाविषयं यावदेतुम्। सूत्रे पूर्वदक्षिणादिपदेभ्यस्तृतीयानिदशो लिङ्गव्यत्ययश्च प्राकृतत्वात्। एतावत् तावत् क्षेत्रमवधीकृत्य विहर्तुं कल्पते। कुतः? इत्याह एतावत् तावद् यस्यादार्यक्षेत्रम्, नो 'से' तथ्य निर्ग्रन्थस्य निर्ग्रन्थ्या वा कल्पते 'अत:' एवंविधाद् आर्यक्षेत्राद् बहिर्विहर्तुम्। 'ततः परं' बहिर्देशेषु अपि सम्प्रतिनृपतिकालादारभ्य यत्र ज्ञान-दर्शन-चारित्राणि 'उत्सर्पन्ति' स्फातिमासादयन्ति तत्र विहर्त्तव्यम्। 'इति:' परिसमाप्तौ। ब्रवीमि इति तीर्थंकर-गणधरोपदेशेन, न तु स्वमनीषिकयेति सूत्रार्थः। -- बृहत्कल्पसूत्रवृत्तिसहित, विभाग ३, पृष्ठ ९०५.
__ ऊपर के प्राकृत-पाठ के अनुसार आर्यक्षेत्र पूर्वदेश में तो अङ्ग-मगध की सीमा तक दक्षिण में कौशाम्बी की सीमा तक, पश्चिम में स्थूण (कुरुक्षेत्र) की सीमा तक और उत्तर में कुणालदेश की सीमा तक था। इसी आर्यक्षेत्र में साधु को विहार का आदेश था। ख. बौद्धों के अनुसार मध्यदेश निम्न था
(1) The boundaries of the Buddhist Majjhimadesa as given in the Mahavagga (Vol. V. pp. 12-13) may be described as having extended in the east to the town of Kajangala beyond which was the city of Mahasala, in the southeast to the river salalvati (Saravati) in the south to the town of Satakannika; in the west to the Brahamana district of Thuna; in the north to the Usiradhaja mounation.
Geography of Early Buddhism, page 1-2. महावग्ग के अनुसार मध्यमदेश के पूर्व में कजंगल तक, दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) में सललवती (सरावती) तक, दक्षिण में सतकणिक तक, पश्चिम में ब्राह्मण प्रदेश थूना (कुरुक्षेत्र) तक और उत्तर में उशीरध्वज पर्वत तक था।
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