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जो एक-दूसरे को दबा कर आगे बढ़ना चाहते हैं। इन सबसे विश्व में असन्तोष एवं हिंसा व्याप्त है। आज का विश्व आतंकवाद और उग्रवाद का शिकार बन रहा है, परन्तु आतंकवाद और उग्रवाद का समर्थन करनेवाले वे ही लोग है जिन्हें किसी न किसी रूप में सामाजिक या आर्थिक या राजनैतिक असन्तोष है। जैनदर्शन के अनुसार असन्तोष का वास्तविक समाधान हिंसा और युद्ध नहीं है। हिंसा से तो हिंसा बढ़ती है। हिंसा दूर करने का वास्तविक तरीका वैचारिक सहमति है, मानसिक सद्भाव है, आत्मिक प्रेम है, जो अनेकान्तवाद से प्राप्त होते हैं। राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर ने अनेकान्तवाद के महत्त्व को प्रकाशित करते हुए लिखा है- 'अनेकान्तवाद का दार्शनिक आधार यह है कि प्रत्येक वस्तु अनन्त गुण पर्याय और धर्मों का अखण्ड पिण्ड है। वस्तु को तुम जिस दृष्टिकोण से देख रहे हो, वस्तु उतनी ही नहीं है। उसमें अनन्त दृष्टिकोणों से देखे जाने की क्षमता है। तुम्हें जो दृष्टिकोण विरोधी मालूम होता है उस पर ईमानदारी से विचार करो तो उसका विषयभूत धर्म भी वस्तु में विद्यमान है। चित्त से पक्षपात की दुरभिसन्धि निकालो और दूसरे के दृष्टिकोण के विषय को भी सहिष्णुतापूर्वक खोजों। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अनेकान्त का अनुसन्धान भारत की अहिंसा, साधना का चरम उत्कर्ष है और सारा संसार इसे जितना ही शीघ्र अपनायेगा विश्व में शान्ति भी उतनी ही शीघ्र स्थापित होगी।" : अनेकान्तवाद की समसामयिकता पर बल देते हुए आचार्य डॉ० साध्वी साधना जी म० ने इस प्रकार लिखा है- “आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान् महावीर ने 'अनेकान्तवाद' के महान् सह-अस्तित्ववादी सिद्धान्त का विकास कर हर प्रकार के विरोधाभासों में समन्वय का एक ऐसा दार्शनिक एवं व्यावहारिक-पथ प्रशस्त किया है, जो आज के विसंगतिपूर्ण जीवन और अन्तर्विरोधपूर्ण विश्वास के लिये संजीवनी के समान उपयोगी सिद्ध हो सकता है।"५
इस प्रकार निश्चित रूप से यह कह सकते हैं कि जैनदर्शन का अनेकान्तवाद आज के विश्व के लिये एक बहुत बड़ा वरदान है।
सन्दर्भ : १. जैनधर्म-दर्शन : डॉ० मोहनलाल मेहता, पृ०-३३७. २. भारतीय दर्शन : चट्टोपाध्याय एवं दत्त, पृ०-२१. ३. जे एगं जाणति से सव्वं जाणति, जे सव्वं जाणति से एगं जाणति। आचारांगसूत्र,
१/४/१२९. ४. उद्धृत-हिन्दी साहित्य और दर्शन में आचार्य सुशील कुमार का योगदान,
पृ०-३६. ५. आचार्य साध्वी साधना, वही, पृ०-१०.
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