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(२) क्षेत्रसे अवधिज्ञान. जघन्य आंगुलके असंख्यातमें भागका क्षेत्र ओर उ० सर्व लोक ओर लोक जैसे असंख्यात खंडवे अलोकमे भी जान सके वहां पर रूपी द्रव्य नही है।
(३) कालसे जघन्य आवलिकाके असंख्यात भाग और उत्कृष्ट असंख्याते सपिणि उत्सपिणि वातें को जाने.
(४) भावसे ज० अनंते भाव. उ० अनंते भाव जाने वह सर्व भावोंके अनंते भाग है इति.
( २ ) मनःपर्यव ज्ञान-अढाइ द्विपके संज्ञी पांचेन्द्रिय के मनोगत भावको जानसके इस ज्ञानके अधिकारी-मनुष्य-गर्भेजकर्मभूमि-संख्यातेवर्षों केआयुष्यवाले-पर्याप्ता-सम्यग्दृष्टि-संयति -अप्रमत-ऋद्धिवान् मुनिराज है जिस मनःपर्यव ज्ञानके दो भेद है (१) ऋजुमति (२) विपुलमति. जिस्के संक्षिप्तसे च्यार भेद है द्रव्य क्षेत्र काल भाव ।
(१) द्रव्यसे-रूजुमति मनःपर्यव ज्ञान-अनंते अनंत प्रदेशी द्रव्य मनपणे प्रणमे हुवे को जाने देखे और विपुलमति विशुद्धसे विस्तारसे जाने देखे। - (२) क्षेत्रसे ऋजुमति मन पर्यव ज्ञान उद्ध लोकमें ज्योति. षीयोंके उपरका तला तीर्यग्लोको अढाइ द्विप दो समुद्रमें पदरा कर्ममूमी तीस अकर्म भूमी छपन अन्तरद्विपोके संज्ञी पांचेन्द्रिय के मनोगत भावोंको जाणे देखे. विपुलमति इससे अढाइ अंगुल क्षेत्र अधिक वह भी विशुद्ध और विस्तारसे जाने देखे।
(३) कालसे ऋजुमति मनःपर्यव ज्ञान-ज० पल्योपम के असं. ख्यातमें भागका कालको उ० भी पल्या० असं० मे भागके कालकों नाने देखे. विपुलमति विशुद्ध और विस्तार करके जाने देखे।
(४) भावसे ऋजुमति मनःपर्यव ज्ञान-ज. अनंते भाव उ०