________________
१८६ १ भव्य
१४-१४-१५-१२-६ / अनं० गु०३ २ अभव्य
१४-१-१३-६-६ स्तोक १ ३ नोभव्याभव्य o-o-०-२-० अनं० गु०२ १ चरम
१४-१४-१५-१२-६ / अनं० गु० २ २ अचरम
१४-१-१३-८-६ स्तोक १ पंच अस्तिकायकी अल्पाबहुत्व शीघ्रबोध भाग ८ वां में देखो।
सेवं भंते सेवं भते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नं० १०८। श्री पन्नवणा सूत्र पद १० - (क्रियाधिकार) है भगवान ! जाव अन्त क्रिया करे ? गौतम ! कोई करे कोई न करे! एवं नरकादि यावत् २४ दंडक और एक समुचय जीव एवं २५ एक जीवाश्रीय और इसी तरह २५ दंडक घणा जीवाश्रीय कुल ५० सूत्र हुवे।
नारकी नारकीपने अन्त क्रिया करे? गौ नहीं करे एवं मनुष्य वर्जके शेष २३ दंडक भी कह देना । मनुष्य में कोई अन्त क्रिया करे कोई न करे । असुर कुमार असुर कुमारपने अन्त क्रिया करे ? गौ० नहीं करे एवं मनुष्य वर्जके २३ दंडक कहना और मनुष्यमें अन्त क्रिया कोई करे कोई न करे इसी तरह २४ दंडक चौवीस दंडक पने लगा लेना। चौवीसकों २४ गुणा करनेसे ५७६ सूत्र!