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७ चामर रत्न-दो हाथका लम्बा होते है नदी उतरतां काम
आवे ( यह तीन रत्न लक्ष्मीके भंडारमें उत्पन्न होते है।
(२) सान पंचेन्द्रिय रत्न १ सेनापती रत्न-मध्य के दो खन्ड वर्जके शेष ४ खन्ड साधे । २ गाथापती रत्न-चौवीस प्रकारका अनाज निपजावे । पहिले
पेहरमें बोवे. दूजे पेहरमें पावे, तीजे पेहरमें
लूणे (काटे चौथे पहरमें स्थानपर पंहुचा दे। ३ वार्द्ध की रत्न-नगर वसावे ४२ भूमीया मेहल बनावे । ४ पुरोहित रत्न-शान्ती पाठ पढे या मुहूर्त बतलावे ये चारों
रत्न राजधानी में उत्पन्न होते है। और चक्र
वर्तीसे कुछ न्युन होते है। ५ हाथी रत्न- ये दोनों रत्न वैताब्य पर्वतके मूलसे प्राप्त होते है। ६ अश्व रत्न- और असवारीके काम आते है । ७ स्त्री रत्न-विद्याधरोंकी श्रेणी में उत्पन्न होती है और चक्रव
तिके भोगमें आती है । और चक्रवत्तिसे चार अंगुल न्यून होती है।
(३) नौ बडी पद्विये. १ तीर्थकर-चौतीस अतीशयादि सर्वज्ञ भगवान् २ चक्रवर्ती-८४ हजार हस्ती, अश्व, रथ ९६ कोड पैदल। ३ वासुदेव-चक्रवर्तीसे आधी ऋद्धि बल होता है। ४ बलदेव-दिक्षा लेके सदगतीमें जाते है ५ मंडलीक-देशका अधिपति एक राजा होता है। ६ केवली-अनन्त ज्ञान-दर्शन-चारित्र वीर्यगुण संयुक्त। । ७ साधू-८ श्रावक । ९ सम्यक दृष्टी।