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२३२ थोकडा नं० १२४
सूत्र श्री भगवती श० २० उ० १० ।
(क्रत संचय ) (१) क्रत संचय-जो एक समयमें दो जीवोंसे संख्याते जीव उत्पन्न होते है।
(२) अक्रत संचय-जो एक समयमें असंख्याते अनन्ते जीवों उत्पन्न होते है।
(३) अवक्तव्य संचय-एकसमयमें रकजीव उत्पन्न होते है।
हे भगवान् ! नारकीके नेरिये क्या क्रतसंचय है, अक्रत संचय है, अवक्तव्य संचय है ? नारकी तीनों प्रकार के हैं । इसी माफिक १० भुवनपति : विकलेन्द्रिय, तीर्यच पांचेन्द्रिय १ मनुष्य १ व्यान्तर १. ज्योतीषी १ विमानीक एवं १९ दंडक ॥ पृथ्वीकायकी पृच्छा! क्रत संचय नहीं है। अक्रत संचय है। अवक्तव्य संचय नहीं है कारण समय समय असंख्याते जीवों उत्पन्न होते है। अगर कोई स्थान पर १-२-३ भी कह्या है वह पर कायापेक्षा है एवं अप्काय तेउकाय वायुकाय वनस्पतिकाय भी समझना।
सिद्धोंकी पृच्छा ? ऋत संचय है, अवक्तव्य संचय है परन्तु अक्रत संचय नहीं है। अल्पाबहुत्व-नारकीमें सर्व स्तोक अवक्तव्य संचय उन्होंसे क्रत संचय संख्यात गुणा। अक्रत संचय असंख्यात गुणा एवं १९ दंडक समझना। ५ स्थावरमें अल्पा० नहीं है। सिद्धोंमें स्तोक क्रत संचय उन्होंसे अवक्तव्य संचय संख्यात गुणा।
॥ सेवंभंते सेवभंते तमेव सचम् ॥