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(४)चतुष्क संयोगी भागोतीजो "उदय उपशम क्षोपोशम.परिणामिक" उदय गतिका उपशम मोहका क्षयोपशम इन्द्रियोंका परिणामिक जीव चारों गतिमें तथा इग्यारहमें गुणस्थानमें पावे।
(५) चतुष्क संयोगी भांगो चोथो “ उदय क्षायिक क्षयोपशम परिणामिक" उदय गतिका क्षायिक मोहका क्षयोपशम इन्द्रि योंका परिणामिक जीव चारों गतिमें तथा बारमे गुणस्थानमें पावे।
(६) पश्च संयोगी एक भांगो क्षायिक समकितवाले जीव उपशम श्रेणी चढते हुएमे उदय गतिका उपशम मोहका क्षायिक समकित क्षयोपशम इन्द्रियोंका परिणामिक जीव इति ।
।। सेवंभंते सेवभंते तमेव सच्चम् ॥
-*OKथोकडा नं. १२३
सूत्र श्री भगवती शतक २० उद्देशो १० (१) हे भगवान जीव 'सोपक्रम आयुष्यवाला है या निरुपक्रम आयुष्यवाला है ! या दोनों प्रकारके आयुष्यवाले जीव हैं।
नारकी आदि २४ दंडकके जीवोंकी पृच्छा ? नारकी, देवता, युगल मनुष्य, तिर्थकर, चक्रवर्ति, वासुदेव, वलदेव, प्रतिवासुदेव, हनोंका आयुष्य निरुपक्रमी होते है शेष सर्व जीवोंका आयुष्य सोपक्रमी निरुपक्रमी दोनों प्रकार होता है।
१ सात कारणोंसे आयुष्य तुटता है उसे सोपक्रमी आयुष्य कहते है। यथाजल, अग्नि, विष, शस्त्र, अति हर्ष, शोक, भय, ज्यादा चलना, ज्यादा भोजन करना, मेथुनादि अध्यवसायके खरच होनेसे ।
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