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२३३ थोकडा नं० १२५
सूत्र श्री भगवती श० १२ उ०६
(पांचदेव द्वार ) नामबार १ लक्षणवार २ स्थितिद्वार ३ संचिट्ठणद्वार ४ अन्तरद्वार ५ अवगाहनाद्वार ६ गत्यागतिद्वार ७ वैक्रियद्वार ८ अल्पाबहुत्वद्वार ९।
[१] नामद्वार-भावि द्रव्यदेव १ नरदेव २ धर्मदेव ३ देवादिदेव ४ भावदेव ५।
[२] लक्षणद्वार -भावि द्रव्यदेव-मनुष्य तीर्यचके अन्दर रहा हुवा जीव देवका आयुष्य बांधकर बैठा है। भविष्यमे देवतोंमें जानेवाला हो उसे भावि द्रव्यदेव कहते हैं। १ नरदेव चक्रधरतकी ऋद्धि संयुक्त हो उसे नरदेव कहते हैं । २ धर्मदेव साधुके गुणयुक्त होता है । ३ देवादिदेव तीर्थकर केवलज्ञान केवल दर्शनादि अतिशय संयुक्त होता हैं। ४ भाषदेव, भुवनपति, बाणमित्र, जोतीषी, विमानीक यह चार प्रकार के देवताओंको भावदेव कहलाते हैं।
[३] स्थितिद्वार-~भावि द्रव्यदेव जघन्य अन्तरमुहूर्त उ. ३ पल्योपम । नरदेव ज० ७०० वर्ष उ०८४ लक्ष पूर्ष। धर्मदेव ज० अन्तरमुहूर्त उ० देशोणोक्रोड पूर्व । देवादिदेव ज०७२ वर्ष उ०८४ लक्ष पूर्व । भावदेव न० १००० वर्ष उ०३३ सागरोपम ।
[४] संचिट्ठणद्वार-स्थिति माफिक है परन्तु धर्मदेवका संचिट्ठण जघन्य एक समय समझना ।