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बहुश्रुत--प्रश्न बाशटीयो. थो. १२७ ..
मार्गण'
जीष, गुण योग. उप० लेश्या
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वासुदेवकि आगति में हास्यादि समदृष्टि अव्रती मन योगी में एकान्त संज्ञी समदृष्टि अवती
अप्रमत हास्यादि ६ तेजुलेशी पकेन्द्री
| अमर गुणस्थान में ८ अमर गु० छप्रस्थ ९ अमर गु० चर्मान्त १० यथाख्यात चा० संयोगी
गुणस्थान के चमन्ति में
संयोगी गु० , १३ छमस्थ गु० , १४ सकषाय गु० ॥ १५ सधेदी गुल , १६ व्रती छमस्थ गु० १७ अप्रमत्त छद्मस्थ० १८ हास्यादि संयति , १९ हास्यादि अप्रमत्त,
व्रती सकषाय , व्रती सधेदी , व्रती छमस्थ ,
समदृष्टि सवेदी , २४ समष्टिसकषाय, २५ बाट बहे ता जीव में
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सबम्
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