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(२) नारकी स्व उपक्रमसे उत्पन्न होते हैं ? पर उपक्रमसे ? विगर उपक्रमसे ? नारकी स्व उपक्रम (स्वहस्तसे शस्त्रादि ) से भी और पर उपक्रमसे भी तथा निरुपक्रमसे भी उत्पन्न होता है। भावार्थ-मनुष्य तिर्यंचमे रहे हुवे जीव नरकका आयुष्य बान्धा है मरती वखत स्वहस्तसे या पर हस्तसे मरे तथा विगर उपक्रम याने पूर्ण आयुष्यसे मरे । एवम् यावत् २४ दंडक समझना।
(३) नारकी नरकसे निकलते है वह क्या स्व उपक्रम, पर उपक्रम और विगर उपक्रमसे निकलते है ? स्व पर उपक्रमसे नहि किन्तु विगर उपक्रमसे निकलते है कारण वैक्रिय शरीर मारा हुवा नहीं मरते है एवं १३ दंडक देवतावोंका भी समझना । पांच स्थावर तीन विकलेन्द्रिय, तीर्यच पंचेन्द्रिय और मनुष्य एवं १० दंडक तीनों प्रकारके उपक्रमसे निकलते है।
(४) नारकी क्या स्वात्म ऋद्धि ( नरकायुष्यादि ) से उत्पन्न होते है या पर ऋद्धिसे उत्पन्न होते है ? नारकी स्वऋद्धिसे उत्पन्न होते है परसे नहीं. एवं यावत् २३ दंडक समझना। इसी माफीक स्व स्व दंडकसे निकलना भी स्थऋद्धिसे होता है कारण जीव अपने किये हुवे शुभाशुभ कृत्यसे ही दंडकमे दंडाता है।
(५) नारकी क्या स्व प्रयोगसे उत्पन्न होता है कि पर प्रयोगसे ? स्व प्रयोग ( मन वचन कायाके प्रयोगोंसे ) किन्तु पर प्रयोगसे नहीं एवं २४ दंडक समझना इसी माफिक निकलना भी समझना।
(६) नारकी स्वकर्मोंसे उत्पन्न होता है कि पर कर्मोंसे ? स्व कर्मोसे किन्तु पर कर्मोंसे नहीं. एवं २४ दंडक तथा निकलना भी समझना। इतना विशेष है कि निकलने में जोतीषी विमानीके निकलने के बदले चषना कहना इति ।
॥ सेवभंते सेवभंते तमेव सच्चम् ॥