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प्राप्ति होती है। दर्शनावरणीय कर्मके क्षयोपशम से श्रोत्रेन्द्रिय, चइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय, चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, एवम् आठ बोलकी प्राप्ति होती है। मोहनीय कर्मके क्षयोपशमसे पांच चारित्र और तीन दृष्टि एवम् आठ बोलकी प्राप्ति होती है। अंतराय कर्मके क्षयोपशमसे दानलब्धि. लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि और वीर्यलब्धि, बाललब्धि, पंडितलब्धि और बालपंडित लब्धि पत्रम् आठ बोलोंकी प्राप्ति होती है एवम् चार कर्मोंके ३२ बोल हुए ।
( ५ ) परिणामिक भावके दो भेद हैं ( १ ) सादि परिणामिक ( २ ) अनादि परिणामिक । सार्दि परिणामिकके अनेक भेद हैं. यथा पुराणां गुड पुराणा मदिरा, अक्षत घृतादि तथा पुराणा गाम, नगर, पुर, पाटण, यावत् राजधानी इत्यादि जिस वस्तुकी आदि है कि अमुक दिनसे इस रूपपणे बनी है और जिसका अंत भी है. ( २ ) अनादि परिणामिकके दश भेद । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और काल द्रव्य तथा लोक, अलोक, भव्य, अभव्य, पवम् दस बोल |
( ६ ) सन्निपातिक भाव -- जो कि उपर पांच भाव कह आये हैं जिसके भांगे २६ नीचे यंत्र में लिखते हैं
द्विक संयोगी भांगा १०
१ उदय-उपशम
२ उदय - क्षायिक
३ उदय-क्षयोपशम
४ उदय - परिणामिक
५ उपशम
- क्षायिक
६ उपशम-क्षयोपशम
७ उपशम- परिणामिक
८ क्षायिक क्षयोपशम
९ क्षायिक परिणामिक
१० क्षयोपशम- परिणामिक