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थोकडा नं० १२२
सूत्र श्री अनुयोग द्वार।
(छै भाव) भाव ६ प्रकारका है यथा (१) उदय भाव (२) उपशम भाव (३) क्षायक भाव (४) क्षयोपशम भाव ५) परिणामिक भाव (६) सनिपातिक भाव ।
(१) उदयभावके दो भेद हैं उदय '(२) उदय निष्पन्न जिसमे उदय तो आठ कम्ौंका और उदय निष्पन्न के २ भेद है (१) जीव उदय निष्पन्न (२) अजीव उदय निष्पन्न, जिसमें जीव उदय निष्पन्नके ३३ बोल है-गात नरक, तियश्च, मनुष्य दे. बता । काय ६ पृथिवीकाय, अप्काय, तेऊकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय, कषाय ४ क्रोध, मान, माया, लोभ, लश्या ६ कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म, शुक्ल, वद ३ स्त्रीवेद. पु. रुषवेद नघुमकवेद, मिथ्यात्वी, अति, अज्ञानी, असन्नि, आहा. रिक, संसारिक छद्मस्थ, सयोगी, अकेवली, असिद्ध, एषम् ३३ * (२) अजीव उदय निष्पन्नके ३० बोल पांच शरीर औदारिक, वैक्रिय आहारिक, तेजस, कार्मण और पांच शरीरों में प्रणमें हुए पुद्गल एवम् १० और वर्ण ५ गन्ध २ रस ५ स्पर्श ८ सर्व मिलकर तीस बोल हुए। .
* जीन उदय निष्पन्नके ३३ बोल हैं, जिसमें अज्ञान, छद्मस्थ, अकेवली, असिद्ध, यह ४ बोल ज्ञानावरणीय कर्मके उदय हैं । आहारिक वेदनी कर्मका उदय है। तीन वेद. चार काय, अवत, मिथ्यात्व, यह नव बोल मोहिनी कर्मके उदय है। शेष १९ बोर नाम कमके उदय है।