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एक जीव क्रोध करनेसे भूत कालमें आठों कर्मों के पुल एकत्रित किये । वर्तमानमें करते है । और भविष्यमें करेंगे। एवं विशेषकर कर्म पुद्गलोको एकत्रितकर बन्ध सामग्री योग्य किया, "करे और करेंगे, इसी तरह क्रोध करके आठों कर्म बांध्यां बांधे, बाधसी.-उदीरीया, उहीरे, उदीरसी-वेदीया. वेदे, वेदसी-और निर्जरीया, निर्जरे, 'निर्जरसी एवं एक जीषा श्रीय क्रोधके १८ भांगे हुवे | इसी तरहे घणो जीवोंश्रय भी १८. कुल ३६ यह समुचय जीवोंश्रय कहा । इसी माफक २४ दंडकमे भी ३६-३६ भांगे लगानेसे २५ को ३६ गुणा करनेसे ९०० और पूर्वके ४०० एवं १३०० भांगे हुवे. इसी तरह मान, माया, लोभके लगानेसे १३०० को चारगुण कुल ५२०० भांगे हुवे ।
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
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थोकडा नं ११८
श्री भगवती सूत्र श० १ उ० ५।
( कपाय ) ____ स्थिति ४ अवगाहना ४ शरीर ५ संहनन ६ संस्थान ६ लेश्या ६ दृष्टी ३ नाण ८ योग ३ उपयाग २ एवं ४७ बोल जिसमें नारकी आदि २४ दंडकमें कितने कितने बोल मिले वह यंत्र द्वारा दिखाते है