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२१५ थोकडा नं० ११६
श्री पन्नवणा सूत्र पद १५ ।
(इन्द्रिय ) संसारी जीवोंके इन्द्रिय दो प्रकारकी है-एक द्रव्येन्द्रिय और दूसरी भावेन्द्रिय. द्रव्येन्द्रियद्वारा पुद्गलोंको ग्रहण करते हैजैसे कर्णेन्द्रियद्वारा पुगलोंको ग्रहण किया और वे पुद्गल इष्ट अनिष्ट होनेसे रागद्वेष होना यह भावेन्द्रिय है। अर्थात् द्रव्येन्द्रिय कारण है और भावेन्द्रिय कार्य है। यहां पर द्रव्येन्द्रियका ही अधिकार १८ द्वार करके लिखेंगे।
[१] नामद्वार-श्रोतेन्द्रिय, चक्षुइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय।
२] संस्थानद्वार-श्रोतेन्द्रियका संस्थान कदम्ब वृक्ष के पुष्पाकार, चक्षुइन्द्रियका चन्द्र या मसूरकी दालके आकार, घ्राणेन्द्रिय लोहारकी धमणाकार, रसेन्द्रिय छूरपलाके आकार और स्पर्शेन्द्रिय नानाकार ।
[३] जाडपना द्वार-एकेक इन्द्रिय जघन्य और उत्कृष्ट अंगुलके असंख्य भाग जाडी है । यहां पर इतना अवश्य समझना चाहिये कि इन्द्रिय और इन्द्रियके उपगरण जैसे श्रोतेन्द्रिय अंगुलके असंख्यातमे भाग है और कान शरीर प्रमाण होते है । कानको उपगरण इन्द्रिय कहते है और जो पुद्गल ग्रहण किया जाता है यह इन्द्रिय द्वार उसीका यहां जाडपना बतलाता है।
[४] लम्बापनाद्वार-रसेन्द्रिय ज अंगुलके असंख्या