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देवता भुवनपती यावत् बारहवें देवलोक तक अपने २ बोलोंसे चार २ बोल [ नारकीवत् ] में भाग ८० शेष बोलोंमें भांगे २७ है। जिसकी स्थापना उपरवत् । परन्तु नारकीके २७ भागों में क्रोधी सास्वते बहुवचन कहे हैं यहां देवतामें लोभी बहुवचन सास्वता कहना । एवं नौ नौयैवेक और पंचानुत्तर वैमानखें तीन बोल ( मिश्रदृष्टी वर्ज के) में भागा ८० शेष बोलोंमें भागा २७ कहना ।
पृथ्वी, पानी, वनस्पतिमें बोल २३ जिसमें तेजुलेशीमें भाँगा ८० शेष बोल २२ तथा तेउ वायुके २२ बोलोंमें अभंग है । याने चारों कषायवाले जीव हरसमय असंख्याते मिलते है । तीन विकलेन्द्रियमें बोल २६ जिसमें [ १ ] स्थितिका दूसरा बोल | [ २ ] अवगाहनाका दूसरा बोल [३] मतिज्ञान [४] श्रुतिज्ञान | [ ५ ] सम्यक्त्वदृष्टी इन पांचों बोलोंमें भांगा ८० शेष बोलोंमें अभंग । तीर्थच पंचेन्द्रिय नारकीवत् चार बोलों में भांगा ८० शेष बोलोंमें अभंग । मनुष्यमें बोल ४७ जिसमें दो स्थितिका दूजो तीजो बोल दो अवगाहनाका दूजो तीजो बोल आहारिक शरीर, और मिश्रदृष्टी इन छे बोलोंमें ८० भांगा शेष बोलोंमें अभंग । सेवंभते सेवते तमेव सच्चम् ।