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२०६ । कषाय चार प्रकारका है-क्राध, मान, माया और लोभ. जिसमे पहिले एक क्रोधकी व्याख्या करते हैं । क्रोधकी उत्पत्ती चार कारणों से होती है यथा।
[१] अपने लिये स्विकार्य] [२] परके लिये [ कुटुम्बादि ) [३ दोनोंके लिये स्वपर] [४] निरर्थक [बिना कारण]
और भी क्रोधके उत्पत्तीका चार कारण कहे है यथा । [१] शरीरके लिये । [ २ ] उपाधी-धनधान्यादि वस्तुके लिये । [३] क्षेत्र-नगा-जमीनादिके लिये । [४] वत्थु बागबगीचा खेती आदिके लिये।
क्रोध चार प्रकारका है।
१] अनन्तानुबंधी-पत्थरकी रेखा सदृश । २] अप्रत्याख्यानी-तलावके मट्टीकी रेखा सहश | ३) प्रत्याख्यानी गाडीके पहियेकी लकीर सदृश । ४' संज्वल-पानीकी लकीर सदृश ।
ओर भी क्रोध चार प्रकारका कहा है।
१] उपशान्त-उपशमा हुवा। [२] अनोपशान्त-उदयमें वर्तता। ३]. आभोग-नानता हुवा। [४] अनाभोग-अनजानता हुवा।
. एवं सोलह प्रकारका क्रोध समुचयजीव करे । इसी माफक २४ दंडकके जीवों करें। इस लिये १६ का २५ गुणा करनेसे ४०० मांगे हुवे । १.१४