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धिमान नहीं है किन्तु अवस्थित है । नारकीके नेरीयोंकी पृच्छा ? मारकीके नेरीया हियमान० भी है वृद्विमान भी है और अबस्थित भी है एवं यावत् २४ दंडक कहना सिद्ध भगवान वृद्धमान है और अवस्थित है। . समुचय जीव अवस्थित रहे तो सदाकाल सास्वता, नारकीका नैरीया हियमान वृद्धमान रहे तो ज. एक समय उ० आविलीकाके असं० भाग, और अपस्थित रहे तो विरह कालसे दुमुणा । "देखो शीघ्रबोध भाग १ में विरह द्वार"। एवं चौवीस दंडकमें हियमान वृद्धमान नारकीवत् और अवस्थित काल विरह बारसे दुगणा, परन्तु पांच स्थावरमें अवस्थित कालहियमानवत् समज लेना। सिद्धोमे वृद्धमान ज. एक समय उ. आठ समय और अवस्थित काल ज एक समय उ० छे मास इति।
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नंबर ११६
श्री भगवती सूत्र श० ५ उ०८।
(सावचया सोवचया) .... हे भगवान ! जीव 'सावचया है या सोवचया है ? या सापचया सोषचया है ? या 'निरुवचया निरवचया ? जीव निस्वचया निरवचया? है शेष तीन भांगा नहीं। नारकी आदि २४ दंडकमें पूर्वोक्त चारों भांगा पावे । सिद्धोंमें भांगा दो [१] सावचया २] निरुवचया निरवचया।
१ वृद्धि । २ हानी। ३ वृद्धि हानी । ४ वृद्धि नहीं हानी नहीं ।