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२०५ (४२) प्रत्येक शरीर बादर वन पर्या० ज अव० असं० गु० (४३) , , अप. उ. अव० असं० गुरु (४४)
, पर्या० उ० अव० असं गु० सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नं० ११४ श्री भगवती सूत्र श० ८ उ० ५।
(सप्रदेश) पुद्गल चार प्रकारके होते है-द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे, और भावसे जिसमें द्रव्यसे पुद्गलोंके दो भेद सप्रदेशी (विपरमाणुवादि) और अप्रदेशी ( परमाणु क्षेत्रसे पु० के दो भेद-सप्रदेशी (दो प्रदेशीसे यावत् असं प्रदेश अवगाह ) और अप्रदेशी (एक आकाश प्रदेश अवगाही) कालसे पुद्गलोके दो भेद-सप्रदेशी (दो समयसे यावत् असं समयकी स्थितिका) और अप्रदेशी (एक समयकी स्थितिको) भावसे पुद्गलोंके दो भेद-सप्रदेशी (दो गुण कालेसे यावत् अनन्त गुण काला ) और अप्रदेशी (एक गुण काला) ... जहां द्रव्यसे अप्रदेशी है वहां क्षेत्रसे नियमा अप्रदेशी है। कालसे स्यात् सप्रदेशी स्यात् अप्रदेशी । एवं भावसे और क्षेत्र से अप्रदेशी है वह द्रव्यसे स्यात् सप्रदेशी स्यात् अप्रदेशी । एवं कालसे भाषसे ॥ और कालसे. अप्रदेशी है वह द्रव्यसे क्षेत्रसे भावसे स्यात् सप्रदेशी स्यात अप्रदेशी है। और भावसे अप्रदेशी है वह द्रव्यक्षेत्रकालसे स्यात सप्रदेशी स्यात् अप्रदेशी है और