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I स्थिअ.श.सं.स.ले.प.नायो उ.|
४ /६/६/६/३/८/३/२ नारकीमें भुषन व्यन्तर ज्यो यावत् अच्युत् दे० मौग्रेवक वै० अनुत्तर वैमान पृ. पा० वना० तेउ० वाउ. विकलेन्द्रिय तीर्यंच पंचेन्द्रिय | मनुष्यों
ક૭ | ક | કવિ દ પ રૂ ૮ રૂ૨ १ स्थितिके चार भेद है-यथा [१] जघन्य स्थिति [२] जघन्य स्थितिसे एक समय दो समय तीन समय यावत् संख्याते समय अधिक [३] संख्याते समयसे एक समय अधिक यावत् असंख्याते समय अधिक [४] उत्कृष्ट स्थिति। ... २ अवगाहनाके चार भेद है यथा-[१] जघन्य अवगाहना [२] जघन्य अवगाहनासे एक दो तीन ,यावत् संख्याते प्रदेश अधिक [:] संख्यातेसे एक दो तीन यावत् असंख्याते प्रदेश अधिक ४] उत्कृष्ट अवगाहना। __ शेष सात द्वारोंके बोल सुगम है देखो लघुदंडकमें।
नारकीमें बोल पावे २९ जोकी स्थिति के चार भेद हैं जिसमेसे दूसरा भेद और अवगाहनाके दूसरे तीसरे भेद और मिश्र वृष्टी एवं चार बोलोंमें क्रोधी मानी मायी लोभी इन चारों कषायके ८० भांगे होते हैं। शेष २५ बोलोंमें क्रोधादि चार कषायके २७ भांगे होते हैं । ये दोनों प्रकारके मांगे नीचे लीखे यंत्रसे समझना।