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आवणहार. पहिली नारकीसे निकले हुवे जीवोंमे है सात एकेन्द्रिय वर्जके शेष १६ पद्वि पावे। दूसरी नरकसे निकले हुवेमे १५ पद्वि पावे (चक्रवर्ती वर्जके) तोसरी नरकसे निकला. १३ पद्वि पावे (बलदेव वासुदेव वर्जके) चौथी नरकसे निकला० १२ पद्वि पावे (तीर्थकर वर्जके) पांचमी नरकसे निकला०११ पद्वि पावे (केवली वर्ज के) छट्ठी नरकसे निकला० १० पद्वि पावे (साधु वर्जके) सातमी नरकसे निकला० ३ पति पावे. हस्ती अश्व और सम्य. कूदृष्टि, भुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषीसे निकला हुवा २१ पछि पावे. तीर्थकर चक्रवर्ती वर्जके । पृथ्वी, पाणी, वन० सन्नी तिर्यंच
और सन्नी मनुष्यसे निकला १९ पद्वि पावे (ती-च-ब-वा वर्जके) तेउ, वाउ, विकलेन्द्रीसे निकला०९ पद्वि. (७ एकेन्द्रीय रत्न, हस्ती और अश्व असन्नी मनुष्य. तिर्यचसे निकला०१८ पद्वि पावे. ७ एकेन्द्री रत्न ७ पंचेन्द्री और · नं० म. सा. श्रा. स. एन १८ पहिले दूसरे देवलोकसे निकला २३ पद्वि पावे। तीजेसे आठवें देवलोक तकका निकला० १६ पद्वि पावें। (७ पद्वि पंचेन्द्री ९ मोटी और नौसे बारहवा तथा नौवेयकसे निकला १४ पछि पावे (हस्ती० अश्व नहीं) पंचानुत्तरसे निकला० ८ पद्वि पावे (वसुदेव वर्ज के ८ मोटी०)
जावणद्वार नारकी पहिलीसे चोथी तक ११ पद्वि वाले जीव जावे (७ पंचेन्द्रीय पद्वि, चक्री, वासुदेव, सम्यकदृष्टी और मंडलीक राजा) नारकी ५-६ में ९ पद्वि वाले जावें । (खी, सम्य गदृष्टीवर्जके) पांच स्थावरमें १४ पद्वि वाले जावें । एकेन्द्री ७ पंचेन्द्रीय ६ (स्त्री नहीं) और मंडलीक एवं १४ ॥ विकलेन्द्री ३ असन्नी मनुष्य तिर्यवमें