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२०० थोकडा नं० ११२
श्री पन्नवणा सूत्र पद २१ ।
(शरीर) (१। नामद्वार -- औदारिक शरीर, वैक्रिय शरीर, आहारक शरीर तेजस शरीर कार्मण शरीर.
(२) अर्थ द्वार-(१) औदारिक शरीर याने हाडमांस लोही राघयुक्त सडण पडण विद्धंसण धर्मवाला होने पर भी तीर्थकर गणधरादि इस शरीरको धारण किया है मोक्ष जानेमे यह शरीर प्रधान कारण है वास्ते इस शरीर को प्रधान माना गया है (२) वैक्रिय शरीर औदारिकसे विप्रीत और दृश्यावृश्य नाना प्रकारका रुप बनावे। (३) आहारीक शरीर चौदह पूर्वधर बनाधे जिसके चार कारण है यथा प्रश्न पूछने के लिये तीर्थंकरोंकी ऋद्धि देखने के लिये, संशय निवारण करनेके लिये जीव रक्षाके लिये । (४) तेजस शरीर, आहारके पाचन क्रिया करनेवाला (५) कार्मण शरीर, पचे हुवे आहारको यथायोग्य प्रणमावे ।
(३) अवगाहना द्वार--औदारिक, वैक्रियकी जघन्य अगुलके असं० भाग उ० औदारिककी १ हजार योजन साधिक, वैक्रियकी १ लक्षयोजन साधिक । आहारक शरीरकी ज० १ हाथ ऊणा उ० १ हाथ । तेजस, कार्मणकी ज• अंगुलके असं० भाग उ० १४ राज प्रमाण ।
(४) शरीर संयोग द्वार--औदारिकमें तेजस कार्मणकी नियमा शेष दोकी भजना। वैक्रियेमें तेजस कारमणकी नियमा