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१६३ साधु १२ पशि मिले चार पांचेन्द्रिय ८ वडी पद्वि - अढाई बीपके बाहर २ पति मिले ( श्रावक सम्यग्दृष्टी।
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नं० ११०
( गत्यागति) जीव मरके दूसरी गतीमें उत्पन्न होता है उसको गति कहते हैं । और जिस गतीसे आकार उत्पन्न होता है उसको भागती कहते हैं । जैसे नारकीसे निकलकर जिस गतिमें जावे ( यथा रत्नप्रभा नारकीका जीव तीर्यचके १० और मनुष्य गतिके ३. भेदोंमें उत्पन्न होता है । उसको गती कहते हैं। और १० भेदें तीर्यचके जीव १५ भेदे मनुष्य के जीव रत्नप्रभा नारकीमें उत्पन्न होता है उसको आगती कहते हैं । इसी तरह सब ज. गह समझ लेना। मार्गणा
न. ती. मनुष्य देवता. समुचय. १ रत्नप्रभा नारकीकी आगती ०-१०- १५- ०२. , , गती ०-१०- ३०- - ३ शर्कर० , आगती ०-५- १५है , , गती ०-१० ३०- - ४० ५ वालूप्रभा , आगती -+४- १५- ०- १९ ६ " " गती ०-१०- ३०- -
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