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र्यव ज्ञान उपजे ? किसीको उपजे किसीको नही उपजे । जिसको मनः पर्यव ज्ञान उपजे उसको केवल ज्ञान उपजे ? किसीको उपजे कीसीको नहीं भी उपजे । जिसको उपजे वह अन्त क्रिया करे ? हां केवल ज्ञानवाला नियमा अन्त क्रिया करे। .. दश भुवनपतिकी भी व्याख्या इसी तरह करनी; परन्तु इतना विशेष कि भुवनपति पृथ्वी, पाणी. घनस्पतिमे उपजे । परन्तु उस जगह केवली प्ररुपीत धर्म सुननेको ना मिले. शेष बोल नारकीवत् ।
पृथ्वी, पानी वनस्पति मरके पांच स्थावर तीन विकलेन्द्रीमें कोई उपजे कोई नहीं उपजे । जो उपजे उसको केवली प्ररुपित धर्म सुननेको न मिले. श्रोत्रेन्द्रियका अभाव है । तिर्यंच पंचे. न्द्रिय और मनुष्य में उपजे उनको व्याख्या नारकीवत् । तेउ वाउ मरके पांच स्थावर तीन विकलेन्द्रीमे उपजे उसकी व्याख्या पृथ्वीकाय वत् करनी । और जो तिर्यंच पंचेन्द्रीमें उपजे उसको केवली प्ररुपित धर्म किसीको मिले और किसीको नहीं मिले। जिसीको मिल भी जाय तो वह श्रद्धे नहीं और शेष मनुष्य, नारको देवताके दडकमें तेउ वाउ नहीं उपजे ।
बेन्द्रिय तेरिन्द्रिय चौरिन्द्रियकी व्याख्या पृथ्वीकायवत् करनी परन्तु इतना विशेष है कि मनुष्यमे मनःपर्यव ज्ञान उपार्जन करे । ( केवलज्ञान नहीं.)
तीर्यच पंचेन्द्रीकी व्याख्या पृथ्वीकायवत् । परन्तु इतना विशेष कि तीर्यच पंचेन्द्रिी नारकीमें भी कोई उपजे । कोई नहीं उपजे । जो उपजे उसको केवली प्ररूपित धर्य सुननेको मिले। किसको मिले किसीको न मिले! जिसको मिले वह समझे ? कोई समझे कोइ नहीं समझे । जो समझे वह श्रद्धे, परतीते, रुचे? हां समझे यावत् रुचे । जिसको रुचे उसको मति, श्रुति.