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१४८ चतुष्क संयोगी १६ भांगा। कृ• नील० का० ते० कृ० नील० का०ते.
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एवं ८,२४,३२,१६ मिला के सब ८० भांगे हुवे इसी माफिक कषाय द्वार तथा संज्ञाहार कहेंगे वहां भी ८० भांगे समझ लेना।
(१०) दृष्टी-मिथ्या दृष्टी है वे किसी समय एक जीवमिले और किसी समय बहत्व जीवमिले इसलिये मांगा दो और भी जहाँ दो भांगा लिखें वहां यही दो भांगे समझना।
(११) ज्ञान-अज्ञानी भांगा दो पूर्ववत् । (१२ ) योग-एककाय योगी है भांगा २ पूर्ववत् ।
(१३) उपयोग-साकारोपयोग, अनाकारोपयोग भांगा ८ असंयोगी ४ द्विसंयोगी ४ साकार १-३ अनाकार २-३ और साकार ११-१३-३१-३३।।
(१४ ) वर्ण-जीवापेक्षा अवर्णयावत् अस्पर्श है और शरीरापेक्षा ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस, ८ स्पर्श।
(१५) उश्वास-उश्वासगा है निश्वासगा है और नोउश्चासगा निश्वासगा है ( वाटे पहतां ) जिसके भांगा २६ यथा असं. योगी ६ तीन एक वचन ३ वहुवचन ।