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रक, तेजस और कार्मण । प्रथमसे पांच वे गु० तक शरीर ४ पाये आहारक नहीं तथा छठे सातवें गु० में शरीर पांच और शेष ७ गुण शरीर तीन औदारिक, तेजस, कार्मण।
(१८) संहनन द्वार-संहनन ६-वज्रऋषभनाराच संहनन, ऋषभ नाराच०, नाराच०, अर्द्ध नाराच०, कीलिका० छेवट्ठ संहनन । प्रथमसे छ? गु० तक छेओं संहनन शेष ८ गु० में एक वज्र ऋषभनाराच संहनन होता है।
(१६) संस्थान द्वार-संस्थान छे हैं, समचतुस्रादि-चौदे ही गुरु में छओं संस्थान पावे ।
(२०) वेद द्वार-वेद तीन, पहिलेसे नौवे गु० तक तीनों वेद । शेष ६ गु० में अवेदी।
(२१) कषाय द्वार-कषाय २५ है, जिसमें १६ कषाय ९ नौ कषाय है । पहिले दूसरे गु० में २५ कषाय । ३-४ गु० में २१ कषाय ( अनंतानुबंधी चोक निकला ) पांचवें गुरु में १७ ( अप्रत्याख्यानी चौक निकला) ६-७-८ गु० मे १३ (प्रत्याख्यानी चौक निकला ) नौवें गु० में ७ कषाय (छे हास्यादि निकला) दशवे गु० में एक संज्वलका कषाय, शेष चार गु० अकषाई है।
(२२) संज्ञी द्वार-पहिले, दूसरे गु० में संज्ञी असंज्ञो दोनों प्रकारके जीव होते है । १३-१४ गु० नो संज्ञी नो असंज्ञी; शेष १० गु० संज्ञी है।
.. (२३) समुद्घात द्वार-समुद्घात सात-वेदनी, कषाय, मरणंति वैक्रिय, तेजस, आहारीक, केवली समुद्घात । १-२४-५ गु० में पांच समु० क्रमशः तीजे गु० में तीन (वेदनी, कषाय,